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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
3.यदुवंशियों को ब्रह्मशाप
ऋषियों के वचन सुनकर वे यदुवंशी कुमार घबरा गये। उन्होंने जल्दी से साम्ब के पेट पर से सारे कपड़े हटाये, तो सचमुच उसमें से, उसी समय एक मूसल निकल आया। मूसल यानी लोहे का वह डण्डा जिससे धान कूटते हैं। ऋषियों का शाप था, वह तो तत्क्षण लग जाता है, सिद्ध हो जाता है। भयभीत होकर वे सोचने लगे कि खेल-खेल में यह क्या हो गया? लेकिन देखो, उनकी बुद्धि कैसी हो गयी। घर लौटकर उन्होंने सब की उपस्थिति में उग्रसेन जी को तो सब बता दिया लेकिन भगवान श्रीकृष्ण को नहीं बताया कि हमने ऋषियो के साथ इस प्रकार का खेल किया और उनके शाप से एक मूसल निकला है। देखो, प्रायः जीवन में कोई-कोई बात ऐसी होती ही है जिसे हम छिपाना चाहते हैं। इस बात को वहाँ सभी लोग जान गये थे, लेकिन किसी ने भी श्रीकृष्ण को नहीं बताया। उन्हें लगा कि श्रीकृष्ण तो ब्राह्मणों का बड़ा आदर करते हैं, उनकी पूजा किया करते हैं। इस बात को सुनकर वे बड़े नाराज हो जायेंगे। यहाँ तक कि उग्रसेन जी ने भी श्रीकृष्ण को यह बात नहीं बताई। उन्होंने उस मूसल को चूर-चूर कर डाला। फिर भी एक कड़ा ऐसा रह गया कि जिसका चूरा हुआ ही नहीं। तब उग्रसेन जी ने कहा इस टुकडे को तथा चूरे को समुद्र में बहा दो।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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