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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
39.युगलगीत
अब यहाँ आगे जो वर्णन है, उसे यदि लीला की दृष्टि से देखें तो भगवान सोचते हैं, मुझे यहाँ से जाना है, तो जाने के पूर्व अभी जो असुर यहाँ-वहाँ छिपे पड़े हैं, मैं उन्हें भी मारकर जाऊँगा, जिससे कि वे इन लोगों केा आगे कोई कष्ट न दे सकें। इस प्रसंग को देखने की यह एक सामान्य दृष्टि है। लेकिन यहाँ गम्भीर दृष्टि यह है कि सारे व्रजवासी भगवान का सान्निध्य प्राप्त कर भक्तिरस में डूबे हुए हैं। परन्तु अब यहाँ जो असुर आने वाले हैं वे बड़े विचित्र प्रकार के हैं। जो लोग अस्त्र-शस्त्र लेकर विरोधी बनकर आयें, वे फिर भी अच्छे हैं। लेकिन यदि कोई भक्त का वेश बनाकर आये और हमें बहकाकर चला जाए, तो वह ज्यादा दुःखद बात होती है। है न? जैसे घर में चोर आ जायें, तो लोग बड़े सावधान हो जाते हैं। परन्तु यदि कोई साधु का वेश बनाकर आये और चमत्कार करके कोई चीज निकालकर दिखाने लग जाए, तो उनको लगता है अरे! ये साधु तो सिद्ध दिखाई देते हैं, (और आपको मूर्ख बनाते हैं) और जब वह कहता है कि तुम पाँच रुपये लेकर आओ मैं उन्हें दस बनाकर दिखाता हूँ, तो वे वैसा ही करते हैं। तब वह साधु वेश धारी पाँच के दस बनाकर दिखाता है। फिर वह कहता है सौ रुपये ले आओ। लाकर देने पर सौ के दो सौ बना देता है। फिर एक हजार, उसके बाद दस हजार.............. और वे नोट निकालकर उस साधु को देते जाते हैं। फिर अचानक देखते हैं कि वह गायब जो गया। देखो, ऐसा करने की क्या जरूरत थी? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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