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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
31.गोप-बालों द्वारा ब्राह्मणों से अन्न की याचना
ब्राह्मण पत्नियाँ कहने लगीं, “भगवान आप हमसे ऐसी बात मत करो। क्यों? क्योंकि सारे जगत के वास्तविक पति तो आप ही हैं।”
“समस्त बन्धुओं को छोड़कर हम यहाँ आयी हैं। अब आप अपने वचनों को सत्य कीजिए। ‘जो सब कुछ छोड़कर आता है उसको मैं अपना लेता हूँ, स्वीकार कर लेता हूँ’। अपने इन वचनों को सिद्ध करते हुए हमें स्वीकार कर लीजिए। हम तो आप ही की शरण में आ गयी हैं।” भगवान ने कहा, “तथास्तु! लेकिन अब आप यहाँ से जाओ और अपने-अपने पति की सेवा करती रहो।” देखो, ये सब धर्म मार्गी थीं, धर्म पथ पर चलने वालीं थीं। इसलिए भगवान उनको उसी में लगाते हैं। कहते हैं, “तुम यहाँ से जाओगी तो भी तुम्हारे पति, पिता, भाई तुमसे किसी प्रकार से द्वेष नहीं करेंगे, तुममें किसी प्रकार का दोष नहीं देखेंगे।” यद्यपि ये जो लौकिक पतियों की सेवा आदि करने के लिए कहा जाता है, वास्तव में, वह भी परमात्मा को पाने के लिए ही होता है। उस परमात्मा को इन्होंने पा लिया, तथापि ये ब्राह्मण पत्नियाँ हैं। इनके मन में धर्म का भी विचार है, इसलिए भगवान ने इनसे कहा, “तुम उनके साथ ही रहना। तुम्हारे ऊपर कोई दोष नहीं आएगा।” |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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