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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
27.श्रीकृष्ण द्वारा अग्निपान
इस बार भी गोपबाल आकर कहने लगे- कृष्ण-कृष्ण महावीर, कृष्ण-कृष्ण महावीर। इसमें एक बात और भी है जो विशेष ध्यान देने की है। जब भी कोई विघ्न आता है तो ये गोपबाल भगवान को याद करते हैं। कहने का अर्थ है हम भी कभी भूल से इधर-उधर चले जाएँ और यदि वहाँ आग लग जाए यानी कोई संकट उपस्थित हो जाए तो उस समय- अब क्या करें? ऐसा सोचकर यदि बैठे ही रह जायँ, तो जल जाएँगे। उस समय भगवान को याद कर लेना चाहिए। बार-बार भगवान को याद करना चाहिए। यहाँ देखो, कहानियों में ही कैसे बड़ी-बड़ी रहस्य की बातें बता दी गई हैं। वैसे तो कथा बड़ी तेजी से आगे बढ़ती जा रही है, लेकिन उसका जो सार है, उसमें जो विशेष अर्थ छिपा हुआ है, उसका जो तात्पर्य है उसे समझना परम आवश्यक है। यहाँ ग्वालबाल बार-बार भगवान का नाम लेकर उनकी शरण में जाते हैं। जब तक भगवान को याद नहीं करते, तब तक भगवान कुछ नहीं करते। अब गायें कहाँ चली गईं, यह क्या भगवान को नहीं मालूम? ये गोपबाल उनके पीछे गए हैं, यह क्या भगवान को नहीं मालूम? लेकिन वे स्वयं कुछ नहीं करते। क्योंकि वे उपद्रष्टा हैं न! वे सिर्फ देखते रहते हैं। जो मुझे बुलाएँगे मैं उनके पास आऊँगा। ऐसा उनका नियम है, स्वभाव है। तो जहाँ कष्ट आया, संकट आया कि ये सब भगवान को पुकारते हैं। तो भगवान वहाँ पर आये। फिर उनसे कहते हैं, “अच्छा आग लगी है, कोई बात नहीं, अब तुम लोग आँखें बन्द करो।” उन सब ने आँखें बन्द कर लीं। भगवान अग्नि पी गए। फिर बोले, “आँखें खोलो।” सबने आँख खोली तो उन्हें वहाँ कुछ भी न दिखाई दे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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