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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
16.मृद्भक्षण-लीला
भगवान ने कहा-सब बच्चे खाते हैं तो मैं क्यों नहीं खाऊँ? तो उन्होंने भी खा ली, इसमें ज्यादा तर्क-वितर्क करने की क्या जरूरत है। देखो, यहाँ जो बताया जाता है उसका प्रयोजन इतना ही है कि हमारे हृदय में भक्ति का भाव बढ़े। भगवान ने अपनी छोटी-छोटी आँखें खोलीं तो क्यों खोलीं, आँखें बन्द कर लीं तो क्यों कर लीं, मिट्टी खाई तो क्यों खाई, किसी समय नहीं खाई तो क्यों नहीं खाई? इन सब बातों पर जो भी विचार किया गया है, वह सब भगवान की लीला का रसास्वादन करने के लिये ही किया गया है। यह थी ‘मृद्भक्षण-लीला’। इस प्रकार भगवान लीला करते हुए गोकुल में सबको आनन्द पहुँचा रहे हैं। राजा परीक्षित ने पूछा- ‘नन्दः किमकरोद् ब्रह्मन्’ नन्द और यशोदा ने ऐसा क्या पुण्य किया था, जो देवकी और वसुदेव के पुत्र होते हुए भी, भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का सुख नन्द-यशोदा को मिला? उन्हें ऐसा सौभाग्य कैसे प्राप्त हुआ? श्री शुकदेवजी कहते हैं- नन्दबाबा पहले वसुप्रवर द्रोण थे और धरा उनकी पत्नी थीं। तभी इन्होंने ब्रह्माजी का आशीर्वाद पा लिया था वर्तमान जन्म के इस सौभाग्य के लिए। देवकी और वसुदेव की बड़ी साधना थी सो उनको भगवान की प्राप्ति हुई। परन्तु यशोदा जी को पता तक नहीं चला कि भगवान वहाँ कब आये। अब यहाँ देखो, देवकी साधन सम्पन्न हैं, यशोदा जी साधन हीन हैं और पूतना है कुसाधन सम्पन्न, भगवान यहाँ तीनों के लिए ही कल्याण का मार्ग बता रहे हैं। तात्पर्य यही है कि भगवान सब का कल्याण करते हैं, भगवान की प्राप्ति सबको हो सकती है। चाहे कोई साधन सम्पन्न हो या साधन हीन हो या फिर कुसाधन रत हो, कोई कैसा भी हो, पर भगवान की कृपा तो सबके ऊपर होती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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