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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
16.मृद्भक्षण-लीला
क्या यह स्वप्न है, या भगवान की माया है? कहीं मेरी बुद्धि का भ्रम या फिर मेरे बालक की कोई योगसिद्धि तो नहीं है? इस बार वे इस प्रकार विचार करने लगीं तो भगवान को लगा- यह ठीक नहीं है। क्योंकि जब कोई माया के बारे में विचार करता है, तो माया गायब हो जाती है। मैया इसी प्रकार विचार करती रही तो मेरे स्वरूप को समझ जायेगी और समझ गई तो बाल-लीला कैसे होगी? तब वे मुझे पूजने लगेंगी।
इसलिए भगवान ने पुत्र स्नेहमयी अपनी वैष्णवी माया का विस्तार कर दिया। देखो, हम पहले देख चुके हैं कि भगवान की माया दो प्रकार की होती हैं एक तो भक्तों को मोहित करने वाली (स्वजनमोहिनी) और दूसरी अभक्तों को मोहित करने वाली (विमुखजनमोहिनी)। यहाँ भगवान चाहते हैं माँ का पुत्र प्रेम बढ़े, जिससे कि उनकी लीला सुगम हो। परन्तु यशोदा जी भगवान को पहचानने लगी थीं, दृश्य गायब हो गया था इसलिए भगवान ने माया बढ़ा दी। इसका अर्थ यह हुआ कि आप आँख खोलकर माया का विचार करने लग जाएँगे, तो सब कुछ गायब हो जायेगा। तो यहाँ भगवान ने माया को बढ़ा दिया। यशोदा मैया सब भूल गईं और अपने बालक को गोद में उठा कर प्यार करने लगीं। देखो भगवान ने मिट्टी क्यों खाई? पहले हमने देखा भगवान ने आँखें बन्द क्यों की? अब मिट्टी क्यों खाई इस पर विचार करेंगे। इतना तो प्रायः सभी जानते हैं कि बर्तन में दूध या मक्खन रखते हैं तो बाद में उसे मिट्टी से साफ करना पड़ता है। यह कार्य भगवान रोज देखते थे। बोले, मैंने पहले माखन खाया है, तो अब मुँह को साफ करने के लिए मिट्टी खा लेता हूँ। ऐसा सोच कर भगवान ने मिट्टी खा ली। दूसरी बात यह है कि मिट्टी को ‘रज’ भी कहते हैं। रज का अर्थ वैसे तो धूल होता है, लेकिन रज का दूसरा अर्थ रजोगुण भी होता है। भगवान कहते हैं मैं तो सत्त्वगुणी हूँ, लेकिन अब मुझे असुरों को मारने का काम करना है। शान्त रहकर, सत्त्वगुण में स्थित हो कर मारने का काम नहीं हो सकता। आगे मुझे मारने का काम करना है, इसलिए मैं धूल खा कर रजोगुण को बढ़ा लेता हूँ। देखो, हम सबको सत्त्वगुण बढ़ाने की जरूरत होती है। परन्तु भगवान को रजोगुण बढ़ाने की जरूरत है, क्योंकि उनको क्रिया बढ़ानी है। इसलिए उन्होंने मिट्टी खाई। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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