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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
15.श्रीकृष्ण की बाल-लीला
भगवान ने गीता जी में कह रखा है कि जो जिस भाव से मुझे भजता है, उसे मैं उसी रूप में प्राप्त होता हूँ। एक और बात यह है कि भगवान श्रीकृष्ण ने गोकुल में एक चोर मण्डली बनाई थी। वे उसके नेता थे। उस चोर मण्डली में कौन–कौन थे? गोकुल में जितने घर थे उनमें से हर घर का एक-एक प्रतिनिधि था। प्रत्येक घर का एक-एक बच्चा उनकी चोर मण्डली में था। अब बताओ, जिस घर में चोरी करने जा रहे हैं, उस घर का बच्चा भी साथ में हो, तो फिर वह चोरी कहाँ हुई? सोचो, वे सब जब योजना बनाते थे, तब कोई कहता था- आज हमारे घर चलो। इस प्रकार वे जब जाते थे, लेकिन ये सारी गोपियाँ जाकर यशोदा मैया से झूठमूठ में शिकायत करती थीं। वास्तव में वे उस बहाने भगवान को देखने जाती थीं। वे सोचती थीं कि जब हम शिकायत करेंगी तो यशोदा जी उन्हें डाँटेंगी, तब वे डरते हुए कैसे खड़े होते हैं वह सब हम देखेंगी। इसीलिए वे वहाँ जाती थीं। ऐसे ये भगवान हैं। भगवान को दूध उतना अच्छा नहीं लगता था। उनको मक्खन बहुत अच्छा लगता था। लेकिन यशोदा मैया उन्हें दूध पीने के लिए कहती रहती थीं। आजकल के बच्चों को भी दूध अच्छा नहीं लगता है। तो किसी दिन जब माँ ने कहा - बेटा तू दूध पी ले, तो श्री कृष्ण कहते हैं- क्यों पीऊँ? माँ कहती हैं- दूध पिएगा तो तेरी चोटी बढ़ेगी। तेरी चोटी छोटी है न, वह नागिन जैसी बढ़ जाएगी। अब चोटी बढ़ाने के लिए भगवान दूध पीने लगे। लेकिन, रोज देखते हैं पर वह बढ़ती ही नहीं। अब बात यह है कि वे दूध पीना छोड़ना चाहते थे तो उन्होंने बहाना किया कि आपने कहा था दूध पीने से चोटी बढ़ेगी, लेकिन वह ज्यादा बढ़ती तो है नहीं, इसलिए मैं दूध नहीं पीऊँगा। भगवान मैया से कहते हैं-
कितने समय से मैं दूध पीता जा रहा हूँ, लेकिन यह चोटी छोटी-की-छोटी ही है। बढ़ती ही नहीं है।
दूध पीते-पीते मैं थक गया हूँ। मैं जो माखन रोटी माँगता हूँ वह देती नहीं हो। ऐसे भावों से भरा यह सूरदास जी का सुंदर पद है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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