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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
12.शकटासुर का उद्धार
पहले अविद्या को मारा, अविद्या के बाद आता है जड़वाद। देखो, बैलगाड़ी जड़ है, उस पर रखा गया दूध-दही आदि खाने-पीने का सामान भी जड़ है। उसके नीचे सुला दिया गए थे भगवान। वे तो चेतन ब्रह्म हैं। क्या हम लोग भी यही नहीं करते रहते हैं? जड़ वस्तु को ऊँचा स्थान देते हैं और चेतन को नीचे कर देते हैं। किसी व्यक्ति की कीमत किससे लगाई जाती है? उसके पैसे से, उसके भोग से, उसके परिवार से। उसको इसी बात से नापते रहते हैं कि उसके पास पैसा कितना है, उसकी पूंजी कितनी है? इस में वह व्यक्ति जो चेतन है, वह तो हो गया गौण, उसे तो हमने नीचा कर दिया और जड़ चीज को ही महत्त्व देकर उसे ऊँचा कर दिया। जैसे उस व्यक्ति का अस्तित्त्व कोई माने ही न रखता हो। जरा सोचो, जगत् में ऐसा होता कि नहीं? भगवान को यह बात अच्छी नहीं लगती। वे तो जड़वाद को समूल उखाड़ फेंकने के लिए ही आए थे। मानो वे कह रहे हों कि मैं चेतन ब्रह्म यहाँ आया हूँ, मुझे नीचे रखते हो? इसलिए भगवान ने गाड़ी को उलट दिया। शकटासुर-भंजन हो गया। इसी प्रकार, हमारे अन्तःकरण में भी जब भगवान का आविर्भाव होता है, तो अविद्या का नाश होता है और जड़ वस्तु का प्रभाव भी मिट जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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