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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
15.मत्स्यावतार
तो वे सोचने लगे कि मत्स्य का रूप लेकर कौन मुझे मोहित कर रहे हैं? कहीं भगवान स्वयं ही तो नहीं आ गये हैं यहाँ।
पहले उन्हें लगता था कि मैं इस मछली की रक्षा करने वाला हूँ। अब उनका वह अभिमान नष्ट हो गया और वे कहने लगे-आप मत्स्य नहीं हो सकते। जिस कारण से आपने यह मत्स्य रूप धारण किया है वह आप मुझे बताइये।
भगवान बोले, “तुम ठीक कहते हो। देखो, आज से सातवें दिन प्रलय होने वाला है। सब कुछ जल में विलीन हो जायेगा।” अब बात यह थी कि भगवान सारे जीव जन्तुओं की, पेड़ पौधों के बीजों की, संतति की, और ज्ञान की रक्षा करना चाहते थे। साथ ही उन्हें ज्ञात था कि हयग्रीव नामक असुर ने वेदों को चुरा लिया। तो वेदों को उससे ले कर पुनः ब्रह्मा जी को देना था। कुछ लोग समझते हैं कि धर्म की, सभी जीवों की रक्षा हम ही करने वाले हैं, यह व्यर्थ का अभिमान है। सोचो प्रलयकाल में इन सारे संस्कारों की रक्षा कौन करता है? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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