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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
14.भगवान की भक्तवत्सलता
घर छोड़कर आये तो उसका अभिमान? किसने बोला था छोड़ने को? हम लोगों को छोड़ने का भी अभिमान हो जाता है। अब देखो, हमारे घर में जो कचरा होता है, उसको उठा कर फेंकते हैं तो क्या अभिमान करते हैं, सब को बताते हैं कि एक किलो कचरा फेंक दिया? तो आखिर हमने कचरा ही तो छोड़ा है, कचरा ही तो त्याग करके आये हैं, उसका क्या अभिमान करना? लेकिन हमको उसका भी अभिमान होता है। भोग के अभिमान से त्याग के अभिमान को छोड़ना ज्यादा कठिन होता है। तो भगवान कहते हैं- तुमने इहलोक छोड़ा, परलोक छोड़ा, लेकिन अब अभिमान को भी छोड़ो। राजा बलि समझ गया। उसने भगवान को अपना मस्तक दे दिया, भगवान इसमें जो उल्टी बुद्धि पड़ी है आप उसको दूर कर दो। भगवान ने उसको दूर कर दिया अपने चरणों के स्पर्श से। उसके अभिमान को नष्ट कर डाला। इस प्रकार से जब हम भगवान की भक्ति करते हैं, तब ऐसा ही होता है। अच्छा, अब एक दृष्टि से देखें तो लग सकता है कि भगवान ने छल किया है। लेकिन सच तो यह है कि छल करके अपने भक्त की महिमा को ही बढ़ा दिया है। भक्त अपने वचन की पूर्ति कितने-कितने संकट सहकर करता है यह दर्शाता है। भले ही उसके साथ छल किया गया, लेकिन उसने एक बार भी ऐसा नहीं कहा कि मैं तुम्हारे ऊपर सुप्रीम कोर्ट में केस चलाऊँगा। वह तो सोचता है- मैंने वचन दिया है तो उसे मैं पूरा करूँगा। सामने वाला छल करता है, तो उसका दोष मेरे ऊपर नहीं है। वचन पूर्ति का जो बहुत बड़ा धर्म है-सद्धर्म है, उसे भगवान की शक्ति से वह (भक्त) पूरा करता है। भक्त को बड़ा बनाने के लिए भगवान अपने ऊपर दोषारोपण भी सहने के लिए तैयार हो जाते हैं। ऐसे भगवान को छोड़कर और दूसरे किसी का क्या भजन करना? वे अपने ऊपर बुराई लेने को भी तैयार हैं। बोले देखो, मेरा भक्त बलि कैसा है। मेरे कपट करने पर भी, अपने गुरु के वचनों को छोड़कर भी, वह अपने वचन पर दृढ़ रहता है। इससे बढ़कर क्या हो सकता है? यह वचन पूर्ति का सद्धर्म है। भगवान उसके गुलाम बन गये, उसके सेवक बन गये। जो अभिमान का त्याग कर देता है, भगवान उसके सेवक बन जाते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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