विषय सूची
श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
6.मोहिनी-अवतार
फिर भगवान ने कहा, “देखो, यह कलश तुमने ही मेरे हाथ में दिया है। अब मैं अपनी मर्जी से दूँगी। बाद में यह नहीं कहना कि इसको क्यों दिया, उसको क्यों नहीं दिया, या फिर इसको कम दिया, उसको ज्यादा दिया, इत्यादि। आपको स्वीकार हो, तभी मैं इसे बाँटूंगी।” जब आदमी का दिमाग फिर जाता है, तब वह जिसमें आसक्त होता है, वह जो कहे सो ठीक, ऐसी उसकी दशा हो जाती है। वह कहे दिन है तो दिन, वह कहे रात तो रात। मनुष्य का दिमाग जब कामातुर हो जाता है तब उसे दूसरी कोई बात समझ में थोड़े ही आती है? मोहिनी रूप ले कर आये भगवान ने कहा- जाओ पहले स्नान, दान, हवन आदि करके आओ। अमृत पीना है, कोई साधारण नित्य-प्रति का काम थोड़े ही हैं? सब लोग स्नान आदि करके नए-नए वस्त्र पहनकर, बन-ठन कर आ गए। तब मोहिनी रूप धारी भगवान ने सोचा कि क्रूर स्वभाव वाले असुरों को अमृत पिलाना सर्पों को दूध पिलाने के समान है। (इसी कारण उन्होंने असुरों को अमृत नहीं पिलाया।) फिर उन्होंने असुर तथा देवताओं को अलग-अलग पंक्तियों में बैठा दिया। अब क्या हुआ कि वह मोहिनी देवताओं को अमृत देती जाए और असुरों की ओर देख-देखकर केवल मुस्कराती जाए। वे उसे देखकर पागल होते जाएँ। हमारा नम्बर अब आया, अब आया सोचकर वे प्रतीक्षा करते रहे। एक असुर था जिसे लगा कि कुछ गड़बड़ बात हो रही है। वह उठा और देवता का रूप ले कर सूर्य तथा चंद्र देव के बीच में जाकर बैठ गया। भगवान (मोहिनी रूप में) उसके पास भी आ गए। यद्यपि भगवान समझ गए थे कि वह असुर दल का है, तथापि भगवान का नियम ऐसा है कि जो उन्हें पहचानता है उसे भी कुछ तो फल मिलना ही चाहिए, इसलिए उसको भी दिया। वह पीने लगा, कण्ठ तक ही गया होगा कि सूर्य और चन्द्रमा समझ गए कि यह अपने दल का नहीं है। बोले भगवान! यह तो असुर है। तब भगवान ने खट से अपना चक्र हाथ में लेकर उसके सिर को काट डाला। लेकिन गले तक अमृत गया था तो उसका सिर अमर हो गया और नीचे का धड़ मर गया। उसी का नाम है राहू। वह चन्द्र को भी खा जाता है और सूर्य को भी खा जाता है। इसे ही चन्द्रग्रहण व सूर्यग्रहण कहते हैं। देखो यह पुराणों की कथा है। इसका अर्थ यह है कि जो चुगली करता है उसको ग्रहण लग जाता है।
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विवरण | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज