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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
2.नाम-महिमा
भगवान इतने दयालु हैं कि एक बार नाम लेने से ही रीझ जाते हैं कि इसने मुझे याद किया। सच में अपने जीवन में भी देखें, तो जब हमें पता चलता है कि हमको कोई याद करता है, तो कितनी खुशी होती है। कितनी प्रसन्नता होती है। भगवान कहते हैं, इसने मुझे याद किया, मैं क्या दूँ इसको? एक आदमी था, जो बड़ा ही नास्तिक था। कहता था - मैं तो कभी भगवान का नाम लूँगा ही नहीं। उसका एक मित्र था जिसको राम नाम से बहुत प्यार था। उसने अपने मित्र से कहा तुम बस एक बार राम का नाम ले लो। वह बोला नहीं लूँगा। एक दिन उसने उस मित्र का गला पकड़ लिया कि तुम एक बार राम का नाम ले लो। तो उसने कहा, ”मैं राम का नाम नहीं लूँगा।’ ‘तब उसने मित्र को छोड़ दिया और कहा कि तुमने नाम ले लिया। तुमने जो इतना कहा कि ‘राम का नाम नहीं लूँगा’ उसमें नाम आ गया। मालूम है, इसने इतने पाप-कर्म किए थे, कि मरने के बाद प्रश्न उठा कि इसने कौन-सा अच्छा काम किया था? तो बोले इसने एक बार राम का नाम लिया था। इसका क्या पुण्य होता है? यमराज ने कहा - मुझे नहीं मालूम, एक बार नाम लेने का क्या फल होता है। ब्रह्माजी के पास चलो। ब्रह्माजी बोले - मुझे भी नहीं मालूम, शिवजी के पास चलो। शिवजी ने भी कहा - मुझे नहीं मालूम। राम जी (विष्णु भगवान) के पास चलो। अब वह आदमी कहने लगा कि यह क्या आप लोग मुझे यहाँ से वहाँ, वहाँ से यहाँ दौड़ा रहे हैं? मैं तो थक गया हूँ अब मैं नहीं चल सकता। तो बोले, अच्छा तुम पालकी में बैठो हम तुमको लेकर चलते हैं। उसे पालकी में बैठाकर ले चले। रामजी ने देखा, पालकी में बैठाकर ब्रह्माजी, शिवजी और यमराज किसी को ला रहे हैं। तो वह बड़ा महान व्यक्ति होगा। राम जी उससे मिलने गए। यह कौन है? उतारो इसे। ब्रह्माजी बोले कि अब आप ही मीमांसा करें। इसने केवल एक बार आपका नाम लिया है। उसका क्या फल होना चाहिए? बोले, अरे यही फल है कि ब्रह्माजी, यमराज जी और शिवजी पालकी में बैठाकर उसे ले आते है और मैं दौड़कर देखने के लिए आता हूँ। एक बार नाम लेने से ऐसा होता है, समझे? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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