गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 34
वे भगवान रुद्र की मुण्डमाला बनाने के लिये नरमुण्डों का संग्रह भी करते थे। सिंह पर चढ़ी हुई भद्रकाली सैकड़ों डाकिनियों के साथ आकर उस समरांगण में दैत्यों को अपना ग्रास बनाती और अट्टहास करती थीं। विमान पर बैठी हुई विद्याधरियाँ, गन्धर्व कन्याएं और अप्सराएँ क्षत्रिय धर्म में स्थित रहकर वीर गति को प्राप्त हुए देव स्वरूप वीरों का पति रूप में वरण करती थीं। आकाश में उन वीरों को पति रूप में चुनते समय वे सुन्दरियाँ परस्पर कलह कर बैठती थीं। कोई कहतीं ‘ये मेरे योग्य हैं, तुम लोगों के योग्य नहीं। इस तरह वे विह्वल चित्त हो विवाद कर रही थीं। कुछ वीर धर्म में तत्पर रहकर समर की रंगभूमि से तनिक भी विचलित नहीं हुए, इसलिये वे सूर्यमण्डल का भेदन करके दिव्य विष्णुपद को जा पहुँचे। कुछ दैत्य अनिरुद्ध को अपने शत्रु के रूप में देखकर भाग खड़े हुए। कुछ असुर अपना-अपना युद्ध छोड़कर दसों दिशाओं में पलायन कर गये। उसी समय गधे पर चढ़ा हुआ भयंकर महादैत्य वृक गर्जना करता तथा बार-बार धनुष टंकारता हुआ युद्ध करने आया। उस रणदुर्मद दैत्य ने भी दस बाण मारकर अनिरुद्ध के प्रत्यंचा सहित धनुष को काट दिया। धनुष कट जाने पर महाबली अनिरुद्ध ने दूसरा धनुष हाथ लिया और दस बाण मारकर वृक के कोदण्ड को भी खण्डित कर दिया। इस पर वृक के होठ रोष से फड़क उठे। उसने त्रिशुल उठाकर जीभ लपलपाते हुए धनुर्धरों में श्रेष्ठ अनिरुद्ध कहा। दैत्य बोला- तू पराक्रमी क्षत्रिय है और तूने आज मेरी सेना का विनाश किया है, इसलिये मैं अभी तुझे मारे डालता हूँ। तू मेरा अद्भुत पराक्रम देख ले। अनिरुद्ध ने कहा- दैत्य ! जो लोग मुँह से बढ़ बढ़कर बातें बनाते हैं, वे यहाँ कुछ नहीं कर पाते। मैं अभी तुम्हें मार डालूँगा। तुम मेरा उत्तम पराक्रम देखो। यदि मैं युद्ध में तुम्हें नहीं मार सकूँ तो मेरी शपथ सुन लो मुझे ब्राह्मण, गौ, गर्भस्थ शिशु और बालकों की हत्या का सदा ही पाप लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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