गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 28
गुणाकर ने कहा- ब्रह्मन ! आप परावर वेत्ताओं में श्रेष्ठ हैं; अत: मुझे परिपूर्णतम परमात्मा श्रीकृष्ण का लक्षण बताइये । वामदेवजी बोले-जिनके अपने तेज में अन्य सारे तेज लीन हो जाते हैं, उन्हें साक्षात परिपूर्णतम परमात्मा श्रीहरि कहते हैं। अंशांश, अंश, आवेश, कला तथा पूर्ण अवतार के ये पांच भेद हैं। व्यास आदि महर्षियों ने छठा परिपूर्णतम तत्व कहा है। दूसरा नहीं: क्योंकि उन्होंने एक कार्य के लिये आकर करोड़ों कार्य सिद्ध किये हैं। श्रीनारदजी कहते हैं- राजन ! श्रीकृष्ण का माहात्म्य सुनकर राजा गुणाकर ने वैर छोड़ दिया और भेंट उपहार लेकर वे प्रद्युम्न का दर्शन करने के लिए आये। श्रीकृष्ण कुमार की परिक्रमा करके राजा ने उन्हें नमस्कार किया और भेंट देकर नेत्रों से अश्रु बहाते हुए वे गदगद वाणी में बोले। गुणाकर ने कहा- प्रभो ! आज मेरा जन्म सफल हो गया। आज के दिन मेरा कुल पवित्र हआ। आज मेरे सारे क्रतु और सम्पूर्ण क्रियाएँ आपके दर्शन से सफल हो गयीं। परेश ! भूमन ! आपके चरणों की भक्ति ही परमार्थरुपा हैं। साधु पुरुषों के संग से आपकी वह परा भक्ति हमें सदा प्राप्त हो। आप ही अपने भक्तों पर कृपा करने वाले साक्षात भक्तवत्सल भगवान हैं। आप मेरी रक्षा कीजिये, रक्षा कीजिये। प्रद्युम्न ने कहा- राजन् ! आपको ज्ञान और वैराग्य से युक्त प्रेम लक्षणा भक्ति तो प्राप्त ही है, मेरे भक्तों का संग भी आपको मिलता रहे। आपके यहाँ भागवती श्री सदा बनी रहे। श्री नारद जी हैं- राजन् ! यों कहकर प्रसन्न हुए भक्तवत्सल श्रीकृष्ण कुमार भगवान प्रद्युम्न ने राजा को अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा लौटा दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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