गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 25
मैथिल ! उसके अतिरिक्त सहस्त्रों कल्पवृक्ष, सैकड़ों कामधेनुएँ, सौ चिन्तामणियाँ तथा सौ दिव्य पारस पत्थर भी कुबेर ने दिये, जिन के स्पर्श से लोहा भी सोना हो जाता है। छत्र, चँवर और सोने के सिंहासन भी सौ-सौ की संख्या में भेंट किये। दिव्य पद्मों की सुन्दर केसरों से युक्त माला दी। सौ द्रोण अमृत, नाना प्रकार के फल, रत्न जटित सोने के आभूषण, दिव्य वस्त्र, दिव्य कालीन, सोने-चांदी के करोड़ों सुन्दर पात्र, अमोघ शस्त्र तथा कोटि सुवर्ण मुद्राएँ भी भेंट कीं। बोझ ढोने वाले हाथियों और मनुष्यों द्वारा सब सामान भेजकर कुबेर ने नौ निधियाँ प्रदान कीं। इस प्रकार महात्मा प्रद्युम्न को भेंट-सामग्री अर्पित करके राज राज ने उनकी परिक्रमा की और हर्ष से भरकर प्रणाम पूर्वक उनसे कहा । कुबेर बोले- आप भगवान महात्मा पुरुष हैं; आपको नमस्कार है। आप अनादि, सर्वज्ञ, निर्गुण एवं परमात्मा हैं। प्रधान और पुरुष-दोनों के नियन्ता और प्रत्यक-चैतन्यधाम हैं; आपको बारंबार नमस्कार है। स्वयंज्योति; स्वरूप और श्यामल अंगवाले आपको नमस्कार है। आप वासुदेव को नमस्कार, संकर्षण को नमस्कार, प्रद्युम्न, अनिरुद्ध एवं सात्वत-भक्तों के प्रतिपालक आपको नमस्कार है। आप ही ‘मदन’ ‘मार’ और ‘कंदर्प’ आदि नामों से प्रसिद्ध हैं; आपको बारंबार नमस्कार है। दर्पक, काम, पंचबाण, अनंग तथा शम्बरासुर के शत्रु भी आप ही हैं; आपको नमस्कार है। हे मन्मथ ! आपको नमस्कार है। हे मीनकेतन ! आपको नमस्कार है। आप मनोभव देव तथा कुसुमेषु ( फूलों के बाण धारण करने वाले ) हैं; आपको नमस्कार है। अनन्यज ! आपको नमस्कार है। रतिपते ! आपको बारंबार नमस्कार है। आप पुष्प धन्वा और मकर ध्वज को नमस्कार है। प्रभु स्मर ! आपको नित्य नमस्कार है। जगद्विजयी आप कामदेव को सादर प्रणाम है। भूमन् ! 'मैं यह करुँगा, यह करता हूँ’, यह मेरा है, यह तुम्हारा है’ ‘मैं सुखी हूँ, दुखी हूँ’, ‘ये मेरे सुहद् लोग हैं’- इत्यादि बातें कहता हुआ यह सारा जगत अहंकार से मोहित हो रहा है। प्रधान, काल, अन्त:करण और शरीर जनित गुणों द्वारा शास्त्र विरुद्ध कर्म करने वाला जन समुदाय बन्धन में पड़ता है। वह कांच में बालक को, वालु का राशि में जल को और रस्सी में सर्प को अपनी आंखों से देखता है, भ्रम को ही सत्य मानता है। यही दशा मेरी है। आज मैंने मूढ़ता वश आपकी अवहेलना की है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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