गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 20
रणभूमि में बाणों द्वारा अन्धकर फैल जाने पर धनुर्धरों में श्रेष्ठ प्रद्युम्न बारंबार धनुष की आकार करते हुए भीष्म के साथ, दीप्तिमान कृपाचार्य के साथ, भानु द्रोणाचर्य के साथ, साम्ब बाह्लीक के साथ, मधुकर्ण के मैथिल ! श्रीकृष्ण के पुत्र चित्रभानु बुद्धिमान सोमदत्त के साथ वृक अश्वत्थामा के साथ, श्रीहरि के पुत्र श्रुतदेव समरांगण में दुश्शासन के साथ तथा सुनन्दन संजय के साथ युद्ध करने लगे। राजन् ! गद विदुर के साथ, कृतवर्मा भूरिश्रवा के साथ तथा अक्रूर यज्ञकेतु के साथ संग्राम-भूमि में लड़ने लगे। इस प्रकार दोनों सेनाओं में परस्पर अत्यन्त भयंकर युद्ध छिड़ गया। श्रीकृष्ण कुमार प्रद्युम्न ने दुर्योधन की विशाल सेना को अपने बाण-समूहों द्वारा उसी प्रकार मथ डाला, जैसे वाराह-अवतारधारी भगवान ने प्रलयकाल के महासागर को अपनी दाढ़ से विक्षुब्ध कर दिया था। बाण से विदीर्ण मस्तक वाले हाथियों के मुक्ताफल आकाश से गिरते समय ऐसी शोभा पा रहे थे, मानो अपने बाणों से उस महासमर मे सारथि, रथी एवं रथों को उसी तरह मार गिराया, जैसे वायु अपने वेग से बड़े-बडे़ वृक्षों को धराशायी कर देती है। उस समय दुर्योधन बार-बार अपने धनुष को टंकारता हुआ वहाँ आ पहुँचा। उसने उस युद्ध में दस बाणों को प्रद्युम्न पर छोड़ा, किंतु यादवेश्वर भगवान प्रद्युम्न ने उन बाणों को अपने ऊपर पहुँचने के पहले ही काट गिराया। तब दुर्योधन ने पुन: प्रद्युम्न के कवच को अपना निशाना बनाकर सोने के पंखवाले दस सायक चलाये। वे सायक प्रद्युम्न के कवच को विदीर्ण करके उनके शरीर में समा गये। तत्पश्चात सहस्त्र बाण समूहों द्वारा प्रहार करके धृतराष्ट्र के बलवान पुत्र महावीर दुर्योधन ने प्रद्युम्न के रथ के सहस्त्र घोड़ों को मार डाला। फिर सौ बाणों से प्रत्यंचा सहित उनके उत्तम धनुष को भी खण्डित कर दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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