गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 9
गद बोले- रुक्मिणी नन्दन ! परिपूर्णतम महात्मा श्रीकृष्ण के हाथ से इसका वध होने वाला है; इसलिये तुम इसे मारकर देवताओं की बात झूठी न करो। नारदजी कहते हैं- राजन् ! शिशुपाल के बांध लिये जाने पर बड़ा भारी कोलाहल मचा। उस समय चेदिराज दमघोष भेंट लेकर प्रद्युम्न के सामन आये। उन्हें आया देख शीघ्र ही अपने अस्त्र-शस्त्र फेंककर प्रद्युम्न आगे बढे़। उन्होंने चेदिराज के चरणों में महात्मा प्रद्युम्न से मिलकर उन्हें आशीर्वाद देते हुए गद्गद वाणी में बोले। दमघोष बोले- यादव-शिरोमणे प्रद्युम्न! तुम धन्य हो। दयानिधे! मेरे पुत्र ने जो अपराध किया है, उसे क्षमा कर दो। श्रीप्रद्युम्न बोले- प्रभो ! इसमें ने मेरा दोष है, न आपका और न आपके पुत्र का ही दोष है। जो कुछ भी प्रिय अथवा अप्रिय होता है, वह सब मैं काल का किया हुआ ही मानता हूँ। नारदजी कहते हैं- राजन्! प्रद्युम्न के यों कहने पर राजा दमघोष उनके द्वारा बांधे गये शिशुपाल को छुडाकर उसे साथ ले चन्द्रिकापुरी में गये। साक्षात श्रीकृष्ण के समान तेजस्वी प्रद्युम्न के बल-पराक्रम का समाचार सुनकर प्राय: कोई राजा उनके साथ युद्ध करने को उद्यत नहीं हुए। सबने चुपचाप उनकी सेवा मे भेंट अर्पित कर दी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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