गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 7
शिशुपाल बोला- बलराम, कृष्ण तथा समस्त यादव मेरे शत्रु हैं। जिन्होंने मेरा तिरस्कार किया है, उन सबको मैं भी अपने सैनिकों द्वारा मरवा डालूँगा। पूर्वकाल में कुण्डिनपुर में राम तथा कृष्ण, इन दोनों भाइयों ने मेरी अवहेलना की, मेरा विवाह रोक दिया; अत: वे मेरे भाई नहीं, शत्रु हैं। यदि तुम दोनों (मेरे माता-पिता होकर) यादवों का समर्थ करोगे तो में तुम दोनों माता-पिता को मजबूत बेड़ियों से बांधकर उसी तरह कारागार में डाल दूँगा, जैसे कंस ने अपने मां-बाप को कैद कर लिया था। अन्यथा तुम दोनों का वध भी कर डालूँगा, मेरी शपथ या प्रतिज्ञा बड़ी कठोर होती है (इसे टालना कठिन है) । श्रीनारदजी कहते हैं- शिशुपाल की कड़ी बातें सुनकर चेदिराज चुप हो गये। उद्धवजी अपनी सेना में लौट आये और जो कुछ शिशुपाल ने कहा था, वह सब उन्होंने वहाँ कह सुनाया। तदनन्तर वाहिनी, ध्वजिनी, पृतना और अक्षौहिणी– ये चार प्रकार की शिशुपाल की सेनाएं सुसज्जित हुईं । बहुलाश्व ने पूछा- प्रभो ! वाहिनी आदि सेना की संख्या मुझे बताइये, क्योंकि ॠषिलोग भूत, वर्तमान और भविष्य-तीनों कालों की बातें जानते हैं । श्रीनारदजी ने कहा- राजन ! सौ हाथी, ग्यारह सौ रथी, दस हजार घोड़े और एक लाख पैदल यह ‘सेना’ का लक्षण है। इससे दुगुनी सेना को ‘चतुरंगिणी’ कहते हैं। चार सौ हाथी, दस हजार रथ, चार लाख घोडे़ तथ एक करोड़ पैदल इतने सैनिक लोहे का कवच पहले और शक्तिशाली वल-वाहनों से सम्पन्न, अस्त्रों-शस्त्रों के ज्ञाता शूरवीर जिस सेना में विद्यमान हो, उसे विद्वानों ने ‘ध्वजिनी’ नाम दिया गया है। ध्वजिनी से दुगुनी सेना को पूर्वकाल के विद्वानों ने ‘पृतना’ माना है। पृतना से दुगुनी सेना ‘अक्षौहिणी’ कही गयी है। जसे साहसी वीर है, उसे ‘शूर’ कहा गया है। जो सौ शूरवीर की रक्षा करता है, उसे ‘सामन्त’ कहते हैं। जो युद्ध में सौ सामन्तों की रक्षा करता है, उसे ‘गजी’ योद्धा कहते हैं। जो समरांगण में सारथि और अश्वों सहित रथ की रक्षा कर सकता है, वह ‘रथी’ कहा गया है। जो अपने बाणों से सेना की रक्षा करता है, उसे ‘महारथी’ कहते हैं। जो अपनी सेना की रक्षा और शत्रुओं का संहार करते हुए रणक्षेत्र में अक्षौहिणी सेना के साथ युद्ध कर सके, उसे सदा ‘अतिरथी’ माना गया है। इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता में विश्वजित खण्ड के अन्तर्गत नारद बहुलाश्व संवाद में ‘गुर्जर और चेदिदेश में गमन’ नामक सातवां अध्याय पूरा हुआ । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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