गर्ग संहिता
द्वारका खण्ड : अध्याय 18
श्रीनारदजी कहते हैं- राजन्! श्रीराधा की बात सुनकर रानियों ने श्रीकृष्ण की कही हुई बात बतायी। तब फिर वैशाख मास की पूर्णिमा को उस शुभ एवं पुण्यतीर्थ सिद्धाश्रम में जब रात्रि का प्रथम प्रहर प्राप्त हुआ और चन्द्रमा की चांदनी सब ओर फैल गयी, तब रासक्रीड़ा का आरम्भ हुआ। रासेश्वरी के रास का आनन्द प्राप्त करने के लिये रासेश्वरी श्रीराधा तैयार हो गयी और उसी तरह सुशोभित हुए, जैसे रतिकशेखर श्यामसुन्दर रासस्थली में उसी तरह सुशोभित हुए, जैसे रति के साथ रतिपति मदन। जितनी सम्पूर्ण गोपसुन्दर और जितनी राजकन्याएं वहाँ उपस्थित थीं, उतने ही रूप धारण करके दो-दो सुन्दरियों के बीच में एक-एक श्रीकृष्ण शोभा पाने लगे। ताल, वेणु और मृदंगों की ध्वनि के साथ मधुर कण्ठवाली सखियों के गीत और उनके नूपूर-कांची आदि आभूषणों की मधुर झनकार का मिला हुआ महान शब्द वहाँ सब ओर गूँज उठा। राजन् ! करोड़ों कामदेवों के लावण्य को लज्ज्ति करने वाले, वनमालाधारी, कुण्डल मण्डित एवं किरीट, वलय और भुजबंदों से अलंकृत पीताम्बरधारी श्यामसुन्दर रासेश्वर रास में स्वयं रासेश्वरी के साथ गीत गाने लगे। विदेहराज ! जैसे तारागणों घिरों हुआ चन्द्रमा शोभा पाता है, उसी प्रकार रासेश्वरी श्रीकृष्ण उन सुन्दरियों के साथ सुशिाभित हो रहे थे ! इस प्रकार वह महनन्दमयी सम्पूर्ण शुभ निशा रासमण्डल में एक क्षण के समान व्यतीत हो गयी। श्रीरास मण्डल की शोभा देख रुक्मिणी आदि समस्त पटरानियां मरमानन्द को प्राप्त हुई। उन सबका मनोरथ आदि रानियों ने प्रेमपरवश होकर साक्षात होकर साक्षात परिपूर्णतम पुरुषोतम श्रीकृष्ण से कहा। रानियाँ बोलीं- प्रभो ! मनोहर रास-रंग में आपकी रूप-माधुरी देखकर हमारा मन उसी प्रकार आत्मानन्दन में निमग्न हो गया, जैसे ज्ञानी मुनि ब्रह्मानन्दन में डूब जाते हैं। ऐसा रास दूसरा न हुआ होगा न होगा। माधव ! यहाँ गोपांगनाओं के सौ यूथ विद्यमान हैं। सखियों सहित हम सोलह हजार आपकी पत्नियों भी इसमें सम्मिलित रही हैं। करोड़ों सखियों के साथ आठों पटरानियों भी यहाँ उपस्थित हैं। माधवेश्वर ! ऐसा रास तो वृन्दावन में नहीं हुआ। श्रीनारदजी कहते हैं- राजन् ! इस प्रकार अभिमान प्रकट करने वाली रानियों की बात सुनकर श्यामसुन्दर श्रीहरि हँसने लगे और बोले– ‘यहाँ का रास सर्वोत्कृष्ट है या वृन्दावन का, यह तुम श्रीराधा से ही पूछो’। तब सत्यभामा आदि सब रानियों ने मनोहारिणी श्रीराधा से इसके विषय में पूछा। श्रीराधा मन-ही-मन कुछ हँसती हुई यह उत्तम बात बोलीं । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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