गर्ग संहिता
मथुराखण्ड : अध्याय 18
उद्धव बोले– श्रीराधे ! आप कैसे लिखती हैं और कैसे दु:ख प्रकट करती हैं, यह सब कथा आपके लिखे बिना ही मैं उनसे निेवेदित करूँगा। श्रीनारदजी कहते हैं– राजन् ! उद्धव की वाणी सुनकर राधा ने बाधारहित हो समस्त गोपियों के साथ उस समय उद्धव का पूजन किया। तत्पश्चात परादेवी रासेश्वरी श्रीराधा को प्रणाम और उनकी परिक्रमा करके, गोपीगणों से विदा ले, सबको बार-बार मस्तक झुकाकर उद्धव रत्नभूषण भूषित उस दिव्याकार रथ पर आरूढ़ हुए। उनको अपनी बुद्धि और ज्ञान पर जो बड़ा अभिमान था, वह दूर हो गया। वे संध्या के समय नन्दजी के पास लौटे आये। सबेरे सूर्योदय होने-पर गोपी यशोदा को नमस्कार करके, उद्धव नन्दराज की आज्ञा ले क्रमश: नौ नन्दों, वृषभानुओं, उपनन्दों, अन्य लोगों तथा कृष्ण के सम्पूर्ण सखाओं से अलग-अलग मिलें और उनसे विदा ले, रथ पर आरूढ़ हो वहाँ से चल दिये। समस्त गोप और गोपियों के समुदाय उनके पीछे-पीछे दूर तक पहुँचाने के लिये गये। उद्धव सबको स्नेहपूर्वक लौटाकर मथुरा को चले गये। श्रीकृष्ण यमुना के मनोहर तटपर अक्षयवट के नीचे एकान्त स्थान में बैठे हुए थे। वहाँ उनको प्रणाम और उनकी परिक्रमा करके बुद्धिमानों में श्रेष्ठ उद्धव नेत्र-कमलों से आँसू बहाते हुए प्रेम गद्गद वाणी में बोले। उद्धव ने कहा– देव ! आप तो सबके साक्षी हैं, आपको मुझे क्या बताना है। आप राधिका और गोपियों का कल्याण कीजिये, कल्याण कीजिये, जिन्हें दर्शन दीजिये। ‘मैं देवदेवश्वर श्रीकृष्ण को तुम्हारे पास ले आउँगा।’ ऐसी बात मैंने उनसे कही है। कृपानिधे ! मेरे इस वचन की रक्षा कीजिये, रक्षा कीजिये। भक्तों के परमेश्वर ! जैसे आपने प्रह्लाद और रूक्मानन्द की, बलि और खट्वांग की तथा अम्बरीष और ध्रुव की प्रतिज्ञा रखी है, उसी प्रकार मेरी की हुई प्रतिज्ञा की भी रक्षा कीजिये, रक्षा कीजिये। इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता में श्रीमथुरा खण्ड के अन्तर्गत नारद बहुलाश्व संवाद में ‘गोपियों के वचन तथा उद्धव का मथुरा लौट जाना' नामक अठारहवाँ अध्याय पूरा हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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