गर्ग संहिता
मथुराखण्ड : अध्याय 4
श्रीनारदजी कहते हैं- राजन् ! इस प्रकार श्रीराधा तथा समस्त गोपीगणों को आश्वासन दे नीतिकुशल भगवान गोविन्द नन्दभवन में लौट आये। तदनन्तर सूर्योदय होने पर नन्द आदि गोप छकड़ों द्वारा भेंट-सामग्री भेजकर, स्वयं रथारूढ़ हो, वे सब-के-सब श्रीमथुरापुरी को गये। राजन् ! बलराम और श्रीकृष्ण के साथ अपने रथ पर आरूढ़ हो, गान्दिनीपुत्र अक्रुर ने मथुरापुरी के दर्शन के लिये उद्यत हो वहाँ से प्रस्थान किया। मार्ग में कोटि-कोटि गोपांग्नाएँ खड़ी हो, क्रोध और मोह से विह्वल होकर श्रीकृष्ण का व्रज से प्रस्थान देख रही थीं। वे अक्रूर को ‘क्रूर-क्रूर’ कहकर पुकारती हुई कटु वचन सुनाने लगीं और जैसे बादल सूर्य को आच्छादित कर देते है, उसी प्रकार गोपियों के समुदाय ने अक्रूर के रथ को चारों ओर से घेर लिया। राजन् ! भगवान के विरह से व्याकुल हुई गोपियों ने अक्रूर के रथ को, उनके घोड़ों को और सारथि को भी लोठियों द्वारा जोर-जो से पीटना आरम्भ किया। लाठियों के प्रहार से घोडे़ वहाँ इधर-उधर उछलने लगे। गोपियों की दो अँगुलियों की चोट से सारथि उस रथ से नीचे जा गिरा। लोक-लज्जा को तिलांजलि दे, गोपियों ने बलराम और श्रीकृष्ण के देखते-देखते अक्रूर को बलपूर्वक रथ से नीचे खींच लिया और अपने कंगनों से उनके ऊपर चोट करना आरम्भ किया। गोपी-समुदाय की वह सेना देखकर बलराम सहित भगवान श्रीकृष्ण ने गान्दिनीनन्दन अक्रूर की रक्षा करके गोपांग्नाओं को समझाया– ‘व्रजांग्नाओं ! चिन्ता न करो। मैं आज संध्या को ही लौट आउँगा। इन अक्रूरजी के सामने व्रजवासी हमारी हँसी न उड़ावें, ऐसा प्रयत्न तुम्हें करना चाहिये’। यों कहकर बलदेवजी तथा अक्रूर के साथ श्रीकृष्ण सुन्दर वेगशाली अश्वों की सहायता से रथ सहित उस मथुरापुरी की ओर चल दिये, जो यादवों के समुदाय से सुशोभित थी। जब तक उन्हें रथ, उसकी ध्वजा अथवा घोड़ों की टाप से उड़ायी गयी धूल दिखायी देती रही, तब तक अत्यन्त मोहवश गोपियाँ पथ पर ही चित्र-लिखित सी खड़ी रहीं। श्रीहरि की कही हुई बात को याद करके उनके मन में पुनर्मिलन की आशा बँध गयी थी। इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता में श्रीमथुरा खण्ड के अन्तर्गत श्रीनारद बहुलाश्व संवाद में ‘श्रीकृष्ण का मथुरापुरी को प्रयाण' नामक चौथा अध्याय पूरा हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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