गर्ग संहिता
वृन्दावन खण्ड : अध्याय 10
वसंत ऋतु के शुभागमन से मनोहर वृन्दावन की दिव्य शोभा हो रही थी। वह देवताओं के नन्दनवन-सा आनन्दप्रद और सर्वतोभद्र वन-सा सब ओर से मंगलकारी जान पड़ता था। उसने (कुबेर के) चैत्र रथ वन की शोभा को तिरस्कृत कर दिया था। वहाँ झरनों और कन्दराओं से संयुक्त रत्न धातुमय श्रीमान गोवर्धन पर्वत शोभा पाता था। वहाँ का वन पारिजात या मन्दार के वृक्षों से व्याप्त था। वह चन्दन, बेर, कदली, देवदार, बरगद, पलास, पाकर, अशोक, अरिष्ट (रीठा), अर्जुन, कदम्ब, पारिजात, पाटल तथा चम्पा के वृक्षों से घिरा हुआ वह वन करंज-जाल से विलसित कुंजों से सम्पन्न था। वहाँ मधुर कण्ठ वाले नर-कोकिल और मयूर कलरव कर रहे थे। उस वन में गौएँ चराते हुए श्रीकृष्ण एक वन से दूसरे वन में विचरा करते थे। नरेश्वर! वृन्दावन और मधुवन में, तालवन के आस-पास कुमुदवन, बहुला-वन, कामवन, बृहत्सानु, और नन्दीश्वर नामक पर्वतों के पार्श्ववर्ती प्रदेश में, कोकिलों की काकली से कूजित सुन्दर कोकिलावन में, लताजाल-मण्डित सौम्य तथा रमणीय कुश-वन में, परम पावन भद्रवन, भाण्डीर उपवन, लोहार्गल तीर्थ तथा यमुना के प्रत्येक तट और तटवर्ती विपिनों में पीताम्बर धारण किये, बद्धपरिकर, नट वेषधारी मनोहर श्रीकृष्ण बेंत लिये, वंशी बजाते और गोपांगनाओं की प्रीति बढ़ाते हुए बड़ी शोभा पाते थे। उनके सिर पर शिखिपिच्छ का सुन्दर मुकुट तथा गले में वैजयन्ती माला सुशोभित थीं । संध्या के समय गोवृन्द को आगे किये अनेकानेक रागों में बाँसुरी बजाते साक्षात श्री हरि कृष्ण नन्दव्रज में आये। आकाश को गोरज से व्याप्त श्री वंशीवट के मार्ग से आती हुई वंशी-ध्वनि से आकुल हुई गोपियाँ श्याम सुन्दर के दर्शन के लिये घरों से बाहर निकल आयीं। अपनी मानसिक पीड़ा दूर करने और उत्तम सुख को पाने के लिये वे गोप सुन्दरियाँ श्रीकृष्ण दर्शन के हेतु घर से बाहर आ गयी थीं। उनमें श्रीकृष्ण को भुला देने की शक्ति नहीं थी। श्रीनन्दनन्दन सिंह की भाँति पीछे घूमकर देखते थे। वे गज किशोर की भाँति लीला पूर्वक मन्द गति से चलते थे। उनके नेत्र प्रफुल्ल कमल के समान शोभा पाते थे। गो-समुदाय से व्याप्त संकीर्ण गलियों में मन्द-मन्द गति से आते हुए श्यामसुन्दर को उस समय गोपवधूतियाँ अच्छी तरह से देख नहीं पाती थीं। मिथिलेश्वर! गोधूलि से धूसरित उत्तम नील केशकलाप धारण किये, सुवर्ण निर्मित बाजू बन्द से विभूषित, मुकुटमण्डित तथा कान तक खींचकर वक्र भाव से दृष्टि बाण का प्रहार करने वाले, गोरज-समलंकृत, कुन्द माला से अलंकृत, कानों में खोंसे हुए पुष्पों की आभा से उद्दीप्त, पीताम्बरधारी, वेणुवादनशील तथा भूतल का भूरि-भार हरण करने वाले प्रभु श्रीकृष्ण आप सबकी रक्षा करें । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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