गर्ग संहिता
वृन्दावन खण्ड : अध्याय 6
अघासुर का उद्धार और उसके पूर्वजन्म का परिचय श्री नारद जी कहते हैं- राजन ! एक दिन ग्वाल-बालों के साथ बछड़े चराते हुए श्री हरि कालिन्दी के निकट किसी रमणीय स्थान पर बालोचित खेल खेलने लगे। उसी समय अघासुर नामक महान दैत्य एक कोस लंबा शरीर धारण करके भीषण मुख को फैलाये वहाँ मार्ग में स्थित हो गया। दूर से ऐसा जान पड़ता था, मानो कोई पर्वत खड़ा हो। वृन्दावन में उसे देखकर सब ग्वाल-बाल ताली बजाते हुए बछड़ों के साथ उसके मुँह में घुस गये। उन सबकी रक्षा के लिये बलराम सहित श्रीकृष्ण भी अघासुर के मुख में प्रविष्ट हो गये। उस सर्परूपधारी असुर ने जब बछड़ों और ग्वाल-बालों को निगल लिया, तब देवताओं में हाहाकार मच गया; किंतु दैत्यों के मन में हर्ष ही हुआ। उस समय श्रीकृष्ण ने अघासुर के उदर में अपने विराट स्वरूप को बढ़ाना आरम्भ किया। इससे अवरूद्ध हुए अघासुर के प्राण उसका मस्तक फोड़कर बाहर निकल गये। मिथिलेश्वर! फिर बालकों और बछड़ों के साथ श्रीकृष्ण अघासुर के मुख से बाहर निकले। जो बछड़े और बालक मर गये थे, उन्हें माधव ने अपनी कृपा-दृष्टि से देखकर जीवित कर दिया। अघासुर की जीवन-ज्योति श्यामघन में विद्युत की भाँति श्रीघनश्याम में विलीन हो गयी। राजन ! उसी समय देवताओं ने पुष्पवर्षा की। देवर्षि नारद के मुख से यह वृत्तांत सुनकर मिथिलेश्वर बहुलाश्व ने कहा । राजा बोले- देवर्षे ! यह दैत्य पूर्वकाल में कौन था, जो इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण में विलीन हुआ ? अहो ! कितने आश्चर्य की बात है कि वह दैत्य वैर बाँधने के कारण शीघ्र ही श्री हरि को प्राप्त हुआ । श्री नारद जी कहते हैं- राजन ! शंखासुर के एक पुत्र था, जो ‘अघ’ नाम से विख्यात था। महाबली अघ युवावस्था में अत्यंत सुन्दर होने के कारण साक्षात दूसरे कामदेव-सा जान पड़ता था। एक दिन मलयाचल पर जाते हुए अष्टावक्र मुनि को देखकर अघासुर जोर-जोर से हँसने लगा और बोला-‘यह कैसा कुरूप है।’ उस महादुष्ट को शाप देते हुए मुनि ने कहा- ‘दुर्मते ! तू सर्प हो जा; क्योंकि भूमण्डल सर्पों की ही जाति कुरूप एवं कुटिल गति से चलने वाली होती है।’ ज्यों ही उसने यह सुना, उस दैत्य का सारा अभिमान गल गया और वह दीन भाव से मुनि के चरणों में गिर पड़ा। उसे इस अवस्था में देखकर मुनि प्रसन्न हो गये और पुन: उसे वर देते हुए बोले- । अष्टावक्र ने कहा- करोड़ों कंदर्पों से भी अधिक लावण्यशाली भगवान श्रीकृष्ण जब तुम्हारे उदर में प्रवेश करेंगे, तब इस सर्प रूप से तुम्हें छुटकारा मिल जायेगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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