प्रभा तिवारी (वार्ता | योगदान) ('<div class="bgsurdiv"> <h4 style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">'''श्रीमद्भागवत प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
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[[चित्र:Next.png|right|link=श्रीमद्भागवत प्रवचन -तेजोमयानन्द पृ. 680]] | [[चित्र:Next.png|right|link=श्रीमद्भागवत प्रवचन -तेजोमयानन्द पृ. 680]] |
01:17, 24 मार्च 2018 का अवतरण
विषय सूची
श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
13.अष्टम प्रश्न - अभक्तों की गति
ऐसे कर्मकाण्डी पण्डितों की यहाँ कड़ी निन्दा की गयी है। क्योंकि समझते हुए भी वे दूसरों को मूर्ख बनाते हैं-यह महापाप है। उनकी अपनी बुद्धि तो बिगड़ी हुई है ही, वे दूसरों को भी भ्रमित करते रहते हैं।
अज्ञानियों में बुद्धि भेद उत्पन्न नहीं करना चाहिए। उन्हें धीरे-धीरे ज्ञान मार्ग पर लाना चाहिए। उन्हें समझाते रहना चाहिए कि तुम ऐसा करो, वैसा करो। ये अज्ञानी जब संकट में पड़ते हैं, तो कर्मकाण्डी पण्डित उनसे कहते हैं-यह यज्ञ करो, इतनी गायों का या इतने तोले सोने का दान करो। और जब वे पूछते हैं किसको दान करें? तो कहते हैं हमको और किसको?
धन की उपयोगिता धर्म पालन के लिए होती है और धर्माचरण विशुद्ध ज्ञान के लिए होता है। लेकिन जो लोग धन का उपयोग केवल अपने घर परिवार के लिए ही करते हैं, वे अपना मरण सामने देखते हुये भी नहीं देखते और संसार में फँस कर मर जाते हैं। इसलिए असत् चीजों को छोड़कर भगवान का ध्यान करना चाहिए। इस प्रकार चमस योगीश्वर ने अपने उत्तर में बताया कि अभक्तों की गति दो प्रकार की होती है। जो अश्रद्धा के कारण भक्ति नहीं करते उनकी तो दुर्गति ही होती है लेकिन जो अज्ञान के कारण भगवद्भक्ति नहीं करते वे दया के पात्र हैं, उन्हें समझाना चाहिए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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