कविता भाटिया (वार्ता | योगदान) |
छो (Text replacement - "होता हैं" to "होता है") |
||
पंक्ति 10: | पंक्ति 10: | ||
भोजन की सामग्री, रत्न ,ऐश्वर्य, पर्यकं, व्यंजन, आसन, चँदोवे, स्वर्णपात्र और तोरण आदि से सुसज्जित अपनी पुरी में सुदामाजी ने पत्नी के साथ प्रवेश किया। उनका घर तो [[श्रीकृष्ण]] के भवन के समान हो गया था। श्रीकृष्ण की कृपा से [[सुदामा]] भी तरुण हो गये, पर विषयों से सर्वथा अनासक्त रहकर वे बिना किसी हेतु के– अनायास प्राप्त हुई समृद्धि का उपभोग करने लगे। वे अपनी पत्नी के साथ ज्ञान, वैराग्य और भक्ति के द्वारा उस सम्पत्ति को त्यागने का विचार करके मन-ही-मन सोचने लगे- ‘मेरे पास इतनी समृद्धि कहाँ से ? यह देव- दुर्लभ सम्पत्ति ब्रह्मणदेव श्रीकृष्ण की ही दी हुई है। इतनी सम्पत्ति देकर भी उन्होंने स्वयं मुझसे कुछ कहा भी नहीं। मेरे चिउड़ों के दानों को मुट्ठी में लेकर बड़ी प्रीति से उन्होंने भोग लगाया। जन्म-जन्म में मुझे उन्हीं का सख्य और दास्य प्राप्त हो। मैं उनके चरण-कमलों का ध्यान करके संसार-सागर से पर हो जाउंगा। | भोजन की सामग्री, रत्न ,ऐश्वर्य, पर्यकं, व्यंजन, आसन, चँदोवे, स्वर्णपात्र और तोरण आदि से सुसज्जित अपनी पुरी में सुदामाजी ने पत्नी के साथ प्रवेश किया। उनका घर तो [[श्रीकृष्ण]] के भवन के समान हो गया था। श्रीकृष्ण की कृपा से [[सुदामा]] भी तरुण हो गये, पर विषयों से सर्वथा अनासक्त रहकर वे बिना किसी हेतु के– अनायास प्राप्त हुई समृद्धि का उपभोग करने लगे। वे अपनी पत्नी के साथ ज्ञान, वैराग्य और भक्ति के द्वारा उस सम्पत्ति को त्यागने का विचार करके मन-ही-मन सोचने लगे- ‘मेरे पास इतनी समृद्धि कहाँ से ? यह देव- दुर्लभ सम्पत्ति ब्रह्मणदेव श्रीकृष्ण की ही दी हुई है। इतनी सम्पत्ति देकर भी उन्होंने स्वयं मुझसे कुछ कहा भी नहीं। मेरे चिउड़ों के दानों को मुट्ठी में लेकर बड़ी प्रीति से उन्होंने भोग लगाया। जन्म-जन्म में मुझे उन्हीं का सख्य और दास्य प्राप्त हो। मैं उनके चरण-कमलों का ध्यान करके संसार-सागर से पर हो जाउंगा। | ||
− | सुदामा ने मन-ही-मन इस प्रकार का निश्चय करके पत्नी के साथ [[श्रीकृष्ण]] के चरणारविन्द में अपना मन लगा दिया और सारा धन ब्राह्मणों को बांटकर भगवान के धाम में चले गये। जो मनुष्य इस श्रीकृष्ण-चरित का श्रवण करता है, वह दरिद्रता से मुक्त होकर उत्तम भगवद्भक्त हो जाता है। नरेश्वर ! तुम्हारे सामने इस पुण्यमय द्वारका खण्ड का वर्णन किया गया। जो इस खण्ड का सदा श्रवण करते हैं, उन्हें उत्तम कीर्ति, कुल, अतिशय भक्ति-मुक्ति और राज्य प्राप्त होता | + | सुदामा ने मन-ही-मन इस प्रकार का निश्चय करके पत्नी के साथ [[श्रीकृष्ण]] के चरणारविन्द में अपना मन लगा दिया और सारा धन ब्राह्मणों को बांटकर भगवान के धाम में चले गये। जो मनुष्य इस श्रीकृष्ण-चरित का श्रवण करता है, वह दरिद्रता से मुक्त होकर उत्तम भगवद्भक्त हो जाता है। नरेश्वर ! तुम्हारे सामने इस पुण्यमय द्वारका खण्ड का वर्णन किया गया। जो इस खण्ड का सदा श्रवण करते हैं, उन्हें उत्तम कीर्ति, कुल, अतिशय भक्ति-मुक्ति और राज्य प्राप्त होता है। |
<center>'''इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता में द्वारका खण्ड के अन्तर्गत नारद बहुलाश्व संवाद में ‘सुदामा ब्राह्मण के उपाख्यान का वर्णन’ नामक बाईसवां अध्याय पूरा हुआ।'''</center> | <center>'''इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता में द्वारका खण्ड के अन्तर्गत नारद बहुलाश्व संवाद में ‘सुदामा ब्राह्मण के उपाख्यान का वर्णन’ नामक बाईसवां अध्याय पूरा हुआ।'''</center> |
01:24, 24 मार्च 2018 के समय का अवतरण
गर्ग संहिता
द्वारका खण्ड : अध्याय 22
भोजन की सामग्री, रत्न ,ऐश्वर्य, पर्यकं, व्यंजन, आसन, चँदोवे, स्वर्णपात्र और तोरण आदि से सुसज्जित अपनी पुरी में सुदामाजी ने पत्नी के साथ प्रवेश किया। उनका घर तो श्रीकृष्ण के भवन के समान हो गया था। श्रीकृष्ण की कृपा से सुदामा भी तरुण हो गये, पर विषयों से सर्वथा अनासक्त रहकर वे बिना किसी हेतु के– अनायास प्राप्त हुई समृद्धि का उपभोग करने लगे। वे अपनी पत्नी के साथ ज्ञान, वैराग्य और भक्ति के द्वारा उस सम्पत्ति को त्यागने का विचार करके मन-ही-मन सोचने लगे- ‘मेरे पास इतनी समृद्धि कहाँ से ? यह देव- दुर्लभ सम्पत्ति ब्रह्मणदेव श्रीकृष्ण की ही दी हुई है। इतनी सम्पत्ति देकर भी उन्होंने स्वयं मुझसे कुछ कहा भी नहीं। मेरे चिउड़ों के दानों को मुट्ठी में लेकर बड़ी प्रीति से उन्होंने भोग लगाया। जन्म-जन्म में मुझे उन्हीं का सख्य और दास्य प्राप्त हो। मैं उनके चरण-कमलों का ध्यान करके संसार-सागर से पर हो जाउंगा। सुदामा ने मन-ही-मन इस प्रकार का निश्चय करके पत्नी के साथ श्रीकृष्ण के चरणारविन्द में अपना मन लगा दिया और सारा धन ब्राह्मणों को बांटकर भगवान के धाम में चले गये। जो मनुष्य इस श्रीकृष्ण-चरित का श्रवण करता है, वह दरिद्रता से मुक्त होकर उत्तम भगवद्भक्त हो जाता है। नरेश्वर ! तुम्हारे सामने इस पुण्यमय द्वारका खण्ड का वर्णन किया गया। जो इस खण्ड का सदा श्रवण करते हैं, उन्हें उत्तम कीर्ति, कुल, अतिशय भक्ति-मुक्ति और राज्य प्राप्त होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |