विषय सूची
श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
4.आदर्श की परिसीमा - भगवान श्री राम
संक्षेप में यह भगवान रामचन्द्र जी का जीवन है। हनुमान जी ने जो स्तुति की है उससे भगवान के लक्षणों का ज्ञान होता है। हम रामकथा को जानते हैं, बाल्यकाल से उसे पढ़ते हैं और सुनते भी रहते हैं, लेकिन थोड़ा सा विचार करके उसे अपने जीवन में उतारना भी चाहिए। आगे भगवान रामचन्द्र जी की कथा का वर्णन आता है। जब अयोध्यावासियों के कटुवचन भगवान ने सुने तो उन्हें सीताजी का त्याग करना पड़ा।
बाद में जब श्रीरामचन्द्र जी ने सुना कि सीता जी पृथ्वी में समा गई, तो वे चाहकर भी अपने शोक के वेग को रोक नहीं सके। समर्थ होते हुए भी, न चाहते हुए भी शोकमग्न हो गए। क्योंकि सीता जी के पवित्र गुणों की उन्हें बार-बार स्मृति हो आती थी।
शुकदेव जी कहते हैं कि स्त्री पुरुष का संग देवताओं के लिए भी दुःखदायक बन जाता है, फिर मनुष्य की तो बात ही क्या है। भगवान श्रीरामचन्द्रजी ने सदा ही धर्म मर्यादा का पालन किया। फिर भी उन्हें कितना त्याग करना पड़ा? लोगों की ओर से त्याग की अपेक्षा बढ़ती ही चली जाती है, सच बात है न? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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