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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
52.श्रीकृष्ण द्वारा कुब्जा को दिये गए वचन की पूर्ति
उद्धव जी मथुरा लौट आये तो भगवान को लगा अब कुब्जा को दिये गए वचन को पूरा कर देना चाहिए। देखिये, अपने उस वचन को पूरा करने के लिए उद्धव जी को साथ लेकर श्रीकृष्ण उसके घर जाते हैं और उस कुब्जा का मनोरथ भी पूर्ण करते हैं। यहाँ शुकदेव जी कहते हैं कि भगवान को पाकर भी, उस कुब्जा ने अत्यंत सामान्य प्रकार की इच्छा की, सो वह बड़ी मंद भाग्या थी। भगवान के पास जाकर सामान्य अंग-स्पर्श चाहना तो बड़ी मंदता की बात है। इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है। जिसकी बुद्धि जितनी हो, वह उतनी ही माँग कर सकता है। भगवान का प्यार देखो, वे छोटा-बड़ा कुछ नहीं देखते, यही उनकी विशेषता है। 53.श्रीकृष्ण का अक्रूर जी के घर जानाउसके बाद भगवान अक्रूर जी के घर जाते हैं। मथुरा पहुँचते ही जब अक्रूर जी ने अपने घर चलने के लिए भगवान से अनुरोध किया था, तब भगवान ने उनसे भी यही कहा था कि मैं आपके घर अवश्य आऊँगा। तो उनके घर भी जाकर आते हैं। फिर उन्हें लगता है कि इस समय हस्तिनापुर में पाण्डवों की स्थिति कुछ अच्छी नहीं है। कौरव-पाण्डवों के बीच क्या चल रहा है इस बात का पता लगाने के उद्देश्य से वे अक्रूर जी से कहते हैं, “अक्रूर जी आप हस्तिनापुर जाइए और वहाँ का सारा समाचार ले आइए।” देखो, भगवान सभी भक्तों का ध्यान रखते थे। गोकुल में थे, तब भी देवकी-वसुदेव आदि सब कैसे हैं इसका पता करवाते रहते थे। मथुरा आने के बाद, गोकुल के लोग कैसे हैं, हस्तिनापुर (आज की दिल्ली) में कौरव-पाण्डव कैसे हैं, इन सब बातों का पता लगवाते रहते थे। तात्पर्य यही है कि भगवान स्वभाव से ही सब का ध्यान रखते हैं। वे किसी को नहीं भूलते। हम लोग बात-बात में कह देते हैं ‘मैं भूल गया’। जैसे, कोई कहे आपने कहा था पत्र लिखूँगा लेकिन लिखा नहीं? तो हम कहते हैं, “काम में लग गया था।” ऐसा कौन-सा बड़ा काम आ गया था? सच बात तो यह है कि बस भूल गये। कोई-कोई तो डाकखाने में डालने के लिए दिए गए पत्र को डालना भी भूल जाते हैं। हर बात तो भूलते रहते हैं। लेकिन भगवान भूलते नहीं हैं। वे अपना वचन अवश्य पूरा करते हैं, उसे भूलते नहीं। (कहीं-कहीं पर तो यहाँ तक लिखा गया है कि व्रजवासियों से मिलने के लिए भगवान स्वयं भी वृन्दावन गए थे।) भगवान का आदेश प्राप्त कर अक्रूरजी हस्तिनापुर जाते हैं और वहाँ सभी इष्ट-मित्रों तथा सगे-सम्बन्धियों से मिलते हैं। वहाँ पाण्डवों की माता कुन्ती उन्हें अपना दुःख सुनाती हैं। पाण्डवों के साथ धृतराष्ट्र का व्यवहार कैसा है यह देखने की दृष्टि से वे कुछ महीनों तक वहीं रहते हैं। सब देखकर उन्हें स्पष्ट रूप से ज्ञात हो जाता है कि पाण्डवों के साथ कौरव बड़ा अन्याय कर रहे हैं। सारा समाचार लेकर अक्रूरजी भगवान के पास लौट आते हैं। इस प्रसंग के साथ, श्रीकृष्ण चरित्र का- दशम स्कन्ध का पूर्वार्ध समाप्त होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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