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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
5.कंस द्वारा देवकी के छः पुत्रों की हत्या
इधर नारद जी कंस के पास आते हैं और कहते हैं कि यह काम ठीक नहीं हुआ। कंस, तेरी बुद्धि बिगड़ गई है, भगवान की माया बड़ी गड़बड़ है। कौन-सा पुत्र आठवाँ होता है? फिर उन्होंने आठ रेखाएँ खींच दी और फिर कहा कि इसको तू पहला कहता है न, उधर से गिनने पर यह आठवाँ होता है कि नहीं? कहीं-कहीं वर्णन आता है कि उन्होंने एक वृत्त (circle) बना दिया, उसकी परिधि पर आठ रेखाएँ खींच दी और कहा कि इस तरह गोलाई में रखेंगे तो प्रत्येक ही आठवाँ हो सकता है। यहाँ भागवत में बताया गया है कि नारदमुनि आकर कहते हैं- तुमको मालूम नहीं है, वसुदेव और देवकी के गर्भ से भगवान ही प्रकट होने वाले हैं, और उनका साथ देने के लिए सारे देवता पहले से ही व्रजभूमि में आ चुके हैं। उनका पूरा मंच अब तैयार है, सारे असुरों को मारने के लिए उन्होंने पूरी तैयारी कर रखी है। इतना बोलकर वे चले गए। अब कंस की बुद्धि फिर गई। वह सोचने लगा, तो क्या यदुवंशियों के रूप में सारे देवता ही यहाँ आ गए हैं? और भगवान विष्णु ही आठवें पुत्र के रूप में आने वाले हैं? कहते हैं कि कंस पूर्वजन्म में कालनेमि नाम का असुर था। कालनेमि ही फिर से यहाँ कंस बन कर आया है। कंस ने देवकी तथा वसुदेव को कारागृह में डाल दिया और उनके पुत्र को मार दिया। इतना ही नहीं, अपने पिता उग्रसेन को भी जेल में डाल दिया और स्वयं राजा बन बैठा। कहते हैं- जो लालची, दुष्ट राजा होते हैं वे माता-पिता, भाई, इष्ट-मित्र सबको दुःख देने के लिए तैयार हो जाते हैं। कंस ऐसा ही अत्याचारी बन गया। प्रलम्ब, बक, पूतना, चाणूर, मुष्टिक, केशि आदि असुर तथा जरासंघ, भौमासुर, बाणासुर, आदि सब उसके साथी थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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