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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
25.श्रीकृष्ण द्वारा दावानल से व्रजवासियों की रक्षा
भगवान कहते हैं, “अब इस यमुना जी के कालिय-हृद का पानी स्वच्छ हो गया है। अब आप सब लोग आराम से इसमें खेलो।” एक तो गर्मी के दिन और फिर हृदय की व्याकुलता से थके हुए होने के कारण उस रात सभी लोग वहीं यमुना जी के किनारे सो गये। लेकिन वहाँ पास में आग लग गयी। उसने चारों ओर से व्रजवासियों को घेर लिया।
उसकी आँच से सब लोग जग गए और स्थिति का भान होने पर सदा की तरह वे सब श्रीकृष्ण बलरामजी की शरण में गए। कहते हैं, “हे कृष्ण हे महाबाहो यहाँ आग लग गई है। सभी स्वजन परिजन जल रहे हैं, आप कुछ कीजिए।” भगवान ने आऽ किया और सारी अग्नि को पी लिया।
पुरुषसूक्त में भी कहा- भगवान के मुख से ही अग्नि और इन्द्र दोनों निकले हैं। तो भगवान ने अग्नि को पी लिया। जहाँ से वह निकली वहाँ चली गयी।
मुख और वाणी के देवता अग्नि हैं। उन्होंने मुख में प्रवेश किया- भगवान अग्नि को पी गये। उनके लिए यह कोई बड़ी बात नहीं है। आखिर यह सारी सृष्टि भगवान से ही उत्पन्न हुई है। पहले आकाश, आकाश से वायु, वायु से अग्नि इस क्रम के। सबके मूल कारण तो परमात्मा ही हैं और यह अग्नि भी उनसे ही निकली है। इसीलिए जब कोई शब्द बोल जाते हैं तो कभी-कभी उसे hot discussion, speech या गरमा-गरम बहस हुई ऐसा भी बोलते हैं। तो अग्नि का सम्बन्ध मुख से है। भगवान ‘अनन्तशक्तिधृक्’ अनन्त शक्तियों को धारण करते हैं, उन्होंने अग्नि को पी कर स्वजनों का संकट दूर किया। फिर सभी लोग वृन्दावन लौटे। वृन्दावन में ग्रीष्म ऋतु भी आती थी तो बसन्त ऋतु जैसा लगता था। वहाँ की महिमा ही इस प्रकार की थी। ऐसा क्यों? क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण वहाँ पर रहते थे। वे वृन्दावन के पहाड़, वन, सरोवर, नदी, कुंज आदि सर्वत्र नई-नई लीलाएँ करते। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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