विषय सूची
श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
4.मार्कण्डेय ऋषि का माया-दर्शन
अब इसके आगे सूत जी और शौनक जी का संवाद है। यहाँ मार्कण्डेय जी का एक छोटा-सा प्रसंग है, जिसमें मार्कण्डेय ऋषि को भगवान की माया देखने की इच्छा होती है। भगवान उनको प्रलय का दर्शन कराते हैं और कहते हैं, यह सब मेरी माया ही है। यह सृष्टि, बड़े-बड़े राजा आदि सब अनेक बार आये और गये। अब केवल उनकी कथा मात्र रह गयी हैं। सत्य वस्तु तो अपना स्वरूप ही है। बाकी सभी चीजें लुप्त हो जाती हैं, यही सिखाने के लिए मार्कण्डेय ऋषि का प्रसंग कहा गया है। 5.उपसंहारअन्त में उपसंहार करते हुए सूत जी सब की वन्दना करते हैं। कहते हैं -
जिनकी स्तुति सारे देवता-गण, सभी मुनि-जन तथा समस्त श्रुतियाँ करती हैं, ‘देवाय तस्मै नमः’ उन परमात्मा को नमस्कार। इस स्कन्ध के अन्तिम अध्याय के अन्त में आने वाले कुछ श्लोक बड़े ही सुन्दर हैं। सूत जी पुनः कहते हैं -
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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