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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
4.भगवान शंकर द्वारा दक्ष यज्ञ की पूर्ति
तो वीरभद्र रुद्र गणों की सेना लेकर यज्ञ स्थल पर पहुँचता है और वहाँ सब की ऐसी पिटाई करता है कि कुछ पूछो नहीं। इसका यहाँ बड़े विस्तार से वर्णन किया गया है। वीरभद्र ने दक्ष के सिर को धड़ से अलग करके उस सिर को यज्ञ कुण्ठ में डाल दिया। भृगु ऋषि को दाढ़ी हिलाकर बात करने की बड़ी आदत थी, तो उनकी दाढ़ी के बाल खींच डाले। वहाँ भग नाम के एक व्यक्ति थे, वे बहुत आँखे दिखाते रहते थे। अतः उनकी आँखें फोड़ डाली। एक पूषा नामक व्यक्ति थे। वे दाँत दिखा-दिखाकर हँसते थे। प्रजापतियों के यज्ञ में जब दक्ष ने शंकर जी का अपमान किया था तब भी वे हँसे थे, अतः उनके दाँत तोड़ डाले। इस प्रकार सारे यज्ञ का विध्वंस कर दिया। अब वहाँ उपस्थित सारे लोग घबरा कर ब्रह्मा जी के पास गये। ब्रह्मा जी बोले, चलो शिवजी के पास चलते हैं। देखो, वैसे तो ये भोले बाबा बड़े शान्त स्वभाव के हैं, लेकिन ये शिव हैं - तो रुद्र भी हैं। इसलिए जब ऐसी बात हो गयी है, तो अब हम और कुछ नहीं कर सकते, बस उनके पास जाकर क्षमा माँग सकते हैं। तो ये सब वहाँ शिवजी के पास जाकर कहते हैं - महाराज हम छोटे-छोटे जीव हैं, हमसे गलती हो जाती है। आप नाराज मत होइये। तो शिव जी कहते हैं - अरे! बच्चों के ऊपर क्या नाराज होना? थोड़ा-सा उसको सिखाने के लिये मैंने यह सब किया है। मुझे उससे कोई द्वेष नहीं है। उससे द्वेष करके करना ही क्या है? तब ब्रह्मा जी ने भगवान शंकर की महिमा का गान किया और कहने लगे कि कर्म में रत लोगों से भूल होती रहती है। यज्ञ में आपका भाग नहीं रखा, यह इन सबसे बहुत बड़ा अपराध हुआ। यज्ञ में जो भी शेष है, वह आपका ही भाग है। इनके अपराध को देखते हुए भी आप इन पर कृपा कीजिए। यही आपका स्वभाव है। अब आप हमारे साथ चलकर उस यज्ञ को पूर्ण कीजिए। बोले - अच्छा ठीक है। तब शंकर जी उनके साथ जाते हैं और दक्ष के यज्ञ को पूरा करते हैं। महाराज, दक्ष का सिर तो रहा नहीं अब क्या करें? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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