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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
47.चाणूर, मुष्टिक आदि का उद्धार
तब, श्रीकृष्ण-बलराम जी को देखकर चाणूर कहता है कि मैंने सुना है तुम लोग युद्ध में, कुश्ती में बड़े निपुण हो। आओ, कुश्ती लड़कर महाराज (कंस) को प्रसन्न करें। उनकी आज्ञा का पालन करना हम प्रजा का कर्तव्य है। वन में तुम लोग मल्ल युद्ध करते ही थे। तुम दोनों ने कई असुर भी मारे हैं, ऐसा भी मैंने सुना है। वे सब कच्चे थे। अब असली के साथ तुम्हारा पाला पड़ा है। तब भगवान उससे कहते हैं, “मैं तो छोटा-सा बालक हूँ और तुम इतने बड़े। मल्ल युद्ध बराबर बल वालों के बीच होना चाहिए। यह भी कोई बराबरी है। मैं तुम्हारे साथ कैसे युद्ध करूँ?” तब चाणूर कहता है,“न तो तुम दोनों छोटे हो न किशोर। तुम लोग तो बड़े बलवान् हो। हजारों हाथियों का बल धारण करने वाले कुवलयापीड को भी तुमने यों ही मार दिया। चलो, अब मेरे साथ कुश्ती लड़ो।” वे कहते हैं- लड़ना ही है तो फिर लड़ो। तब श्रीकृष्ण के साथ चाणूर और बलराम जी के साथ मुष्टिक मल्ल-युद्ध में भिड़ गये। रंगशाला में बैठी हुई स्त्रियाँ, बड़े-बूढ़े सब कहने लगे, “कैसी दुष्टता हो रही है? यह कैसा अधर्म हो रहा है यहाँ पर। इसमें हमें बैठना नहीं चाहिए। इतना बड़ा यह राक्षस-असुर और छोटे से श्रीकृष्ण। इनमें क्या कोई बराबरी है? इनका यह युद्ध ठीक नहीं है। कोई कुछ बोलता क्यों नहीं?” वहाँ सब लोग ऐसा बोलने लगे। भगवान ने थोड़ी देर दाँव-पेंच दिखा कर फिर उस चाणूर को हाथों से उठाकर जमीन पर पटक दिया। चाणूर की मृत्यु हो गई। तब तक बलराम जी ने भी उस मुष्टिकासुर का वध कर डाला। फिर भगवान ने शल तोशल और बलराम जी ने कूट का भी वध कर डाला। शेष पहलवान डर कर भाग गए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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