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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
13.कलि के पाँच निवास-स्थान
राजा परीक्षित ने कहा, ‘‘अच्छा मैं तुम्हें चार स्थान देता हूँ, द्यूतं माने जुआ, पानं यानी मदिरा, स्त्री यानी कामवासना, व सून माने कसाईखाना। तुम इन्हीं स्थानों में रहना।’’ कलि ने कहा, ‘‘ इतने स्थान मेरे लिए काफी नहीं हैं। थोड़ा और स्थान दे दीजिए।’’ परीक्षित ने कहा तुमको और स्थान चाहिए? राजा को दया आ गई। बोले, अच्छा एक और स्थान ले लो। तुम ‘सुवर्ण’ माने सोने में रहो, धन में रहो। अब देखो, इन पाँच स्थानों का तात्पर्य क्या है? ये सब कलि अर्थात् कलह के निवास-स्थान हैं। वह कैसे? द्यूतं- द्यूतं माने सट्टेबाजी, जुआ (हंउइसपदह) अमेरीका में एक पूरा शहर ही जुए का अड्डा बना हुआ है। लास वेगस नामक उस शहर में लोग जुआ खेलने के ही लिए जाते हैं। जहाँ पर जुआ खेला जाएगा वहाँ पर सत्य तो रह नहीं सकता। वहाँ अनृत यानी, असत्य, झूठ, और फिर झूठ के कारण लड़ाई-झगड़ा तो होगा ही। इस प्रकार यह कलि का निवास -स्थान है। पानं- इसी प्रकार जब आदमी शराब पी लेता है, तो नशा हो जाता है। नशा होने पर विवेक रहता है क्या? जुआ सत्य का नाश करने वाला है तो मदिरा-पान विवेक का नाश करता है और जो पान करता है उसे मद, अभिमान हो जाता है। जिसके कारण फिर वह धर्म का अतिक्रमण करता है। स्त्री- और जो तीसरा स्थान ‘स्त्री’ कहा गया, उसका अर्थ है कामवासना। देखो, स्त्री को देखकर पुरुष के मन में, व पुरुष को देखकर स्त्री के मन में कामवासना जगती है, और जब मन में कामवासना प्रबल हो जाती है तो- ‘कामातुराणां न भयं न लज्जा’ उस व्यक्ति को न किसी का भय लगता है, न लज्जा आती है वह कामवासना किसी भी प्रकार उससे अधर्म का काम करा ले जाती है। तो काम के कारण भी आदमी अन्धा हो जाता है। अतः यहाँ ‘स्त्री’ का तात्पर्य है कामवासना। तो कामवासना कलि का निवास होता है फिर चाहे वह स़्त्री के हृदय में हो कि पुरुष के हृदय में । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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