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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
3.वसुदेव-देवकी का विवाह
शूरसेन ने मथुरा को बसाया था, वे ही मथुरा के पहले राजा थे। अब मथुरा में राजा उग्रसेन हैं, और उनका पुत्र है कंस। वसुदेव जी शूरवंश के हैं, उनका विवाह हो रहा है देवक की कन्या देवकी के साथ। देवकी कंस की चचेरी बहन हैं। विवाह के बाद विदाई के समय देवकी और वसुदेव रथ में बैठे हैं। तब देवकी को प्रसन्न करने के लिए, प्रेम दर्शाने के लिए, कंस स्वयं रथ हाँकने लगा। लेकिन देखो, आनन्द उत्सव चल रहा है और अकस्मात् वहाँ आकाशवाणी हुई- “अरे मूढ़, तू जिनका रथ हाँक रहा है, उनका आठवाँ गर्भ तेरा काल होगा।” इतना सुनते ही कंस तलवार निकालकर अपनी उस बहन देवकी को मारने के लिए तत्पर हो गया।
जैसे आकाश में बिजली चमककर चली जाती है, स्थिर नहीं होती; वैसी ही दुष्ट व्यक्ति की प्रीति भी स्थिर नहीं रहती है। देखो, यदि कंस का प्रेम सच्चा होता तो आकाशवाणी सुनते ही क्या वह एक क्षण के लिए विचार किए बिना ही देवकी को मारने के लिए तैयार हो जाता? माने, उसके प्रेम में कितनी सच्चाई है यह बात प्रकट हो गई। उसका प्रेम बहुत चंचल था, इसीलिए क्षर भर में वह मारने के लिए खड़ा हो गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीरामचरितमानस 4.13.2
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