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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
70.श्रीकृष्ण की संतति का वर्णन
आगे श्रीकृष्ण की सन्तति का वर्णन आता है। प्रद्युम्न के पुत्र अनिरूद्ध के विवाह का भी वर्णन है। यहाँ उसे हम संक्षेप में देखेंगे। बाणासुर की कन्या थी ऊषा। वह स्वप्न में एक पुरुष को देखती है। उसका मन उस पुरुष पर न्योछावार हो जाता है। अतः अगले दिन से वह गुमसुम सी रहने लगती है। उसे देखकर उसकी सखी चित्रलेखा कहती है, “तुम्हें क्या हो गया है, तुम ऐसी उदास क्यों हो गयी हो ?’’ तब ऊषा ने उससे कहा‚ “स्वप्न में मैंने एक पुरुष को देखा। वह इतना सुन्दर था कि मेरा मन उस पर रीझ गया है।” अब वह चित्रलेखा भी बड़ी विलक्षण प्रतिभाशाली थी। कहती है, “मैं चित्र बना-बना कर दिखाती हूँ, तुम बताना कि उनमें से कौन-सा चित्र उस पुरुष से मिलता है?” फिर वह चित्र बनाती जाती है। जब उसने भगवान श्रीकृष्ण को चित्र बनाया तो ऊषा ने कहा कि वह इस चित्र से मिलता-जुलता था। फिर उसने प्रद्युम्न और प्रद्युम्न के बाद अनिरुद्ध का चित्र बनाया। तब ऊषा ने कहा कि वह ऐसा ही था। चित्रलेखा को योग सिद्धियाँ भी प्राप्त थीं। अपनी योग विद्या से वह अनिरुद्ध को द्वारका से उठा कर ले आती है और ऊषा के कक्ष में पहुँचा देती है। जब बाणासुर को इस बात का पता लगा, तब सैनिकों सहित ऊषा के महल में जाकर उसने अनिरुद्ध को घेर लिया। फिर जब देखा कि अनिरुद्ध ने साहस पूर्वक उन सबका सामना करते हुए सैनिकों का संहार कर डाला, तो बाणासुर ने नागपाश से अनिरुद्ध को बाँध लिया। यह बड़ी विचित्र कथा है। उधर द्वारका में किसी को पता ही नहीं चला। क्योंकि देखो भगवान श्रीकृष्ण की सहस्रों पत्नियाँ थीं तो बच्चे कितने रहे होंगे? तब नारद जी वहाँ द्वारका में जाते हैं और कहते हैं कि अरे तुम्हारे घर में रोल कॉल होता है कि नहीं? सभी बच्चे घर वापस आ गए कि नही इस बात का भी कोई ध्यान रखता है या नहीं? आपके घर का एक बच्चा गायब है, किसी को इस बात का पता भी है? (बोले- हाँ? एक बच्चा नहीं है? कौन है वह? तब नारद जी ने कहा- अनिरुद्ध कहाँ है? कहाँ गया है? बोले- पता नहीं कहाँ गया? इतने सारे है तो पता ही नहीं चलता कि कौन कहाँ गया? इस प्रकार, यह बड़ी विचित्र लीला है।) फिर नारद जी ने सारी बातें कह सुनाईं कि किस प्रकार अनिरुद्ध अब बाणासुर के नागपाश से बन्धा हुआ वहाँ शोणितपुर में कैद है। तब श्रीकृष्ण, बलराम तथा अन्य यदुवंशी बाणासुर पर चढ़ाई कर के बन्दी बनाए गए अनिरुद्ध को मुक्त कराते हैं। फिर ऊषा और अनिरुद्ध का विवाह करा कर उन्हें ले आते हैं। इसके पूर्व, रुक्मी की पौत्री रोचना के साथ अनिरुद्ध के विवाह के समय, जुआ खेलते हुए जब रुक्मी ने बेईमानी की और व्यंग किया, तो बलराम जी ने उसे मार ही डाला। उस पर रुक्मिणी जी बहुत नाराज हुईं। श्रीकृष्ण मौन साध गए। इससे वह झगड़ा वहीं समाप्त हो गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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