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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
9.चतुर्थ प्रश्न - माया तरण का उपाय
अब यहाँ, जरा प्रश्नों के क्रम की ओर ध्यान देना। पहला प्रश्न था भागवत धर्म क्या है? दूसरा था भगवद भक्त किसे कहते हैं? उसके लक्षण क्या होते हैं? तीसरा था भक्ति में बाधा डालने वाली माया का क्या स्वरूप है? अब, चौथा प्रश्न है इस माया को कैसे पार किया जाए? ऐसे सुन्दर प्रश्न पूछे हैं राजा निमि ने। कहते हैं-
भगवन्! माया को पार करना बहुत कठिन है ‘अकृतात्मभिः’ जिन्होंने अपने आप पर कभी संयम नहीं रखा, स्वयं को अनुशासन में नहीं रखा, ऐसे अज्ञानी लोगों के लिए माया बडी दुस्तर होती है। देखो, गीता जी में स्वयं भगवान ने भी ऐसी ही बात कहीं है।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘‘मेरी माया को पार करना बड़ा कठिन है लेकिन जो मेरी शरण में आते हैं वे उसे बड़ी सरलता से पर कर जाते हैं।’’ जैसे, मछली पकड़ने वाला जब जाल फैलाकर मछली पकड़ने के लिए नदी में खड़ा होता है, तब जो मछलियाँ उसके पैर के पास रहती हैं, या पहुँच जाती हैं, वे उस जाल में नहीं फँसतीं। वैसे ही जो भगवान की शरण ग्रहण करते हैं वे माया में नहीं फँसते। इसी को गीता जी की भाषा में ‘मामेव ये प्रपद्यन्ते’ कहा गया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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