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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
16.प्रचेताओं को भगवान शंकर का उपदेश
प्राचीनबर्हि के दस लड़के थे। वे सब-के-सब एक जैसे स्वभाव के थे। उनमें आपस में इतना प्यार था कि कुछ पूछो नहीं। अतः उन सबका नाम भी एक ही हुआ - प्रचेता। प्रचेता-1, प्रचेता-2 ............ इस प्रकार। वे सब बड़े भगवद्भक्त थे - कर्मकाण्डी नहीं थे। राजा प्राचीनबर्हि ने जब उनसे सन्तान उत्पन्न करने के लिए कहा तब उनकी आज्ञा मानकर वे सब (सारे प्रचेतागण) पहले तपस्या करने के लिए पश्चिम दिशा में समुद्र की ओर निकल पड़े, और चलते-चलते नारायण सरोवर जा पहुँचे। अभी वे सब उस सरावेर के सौन्दर्य को देखकर आश्चर्यचकित हो ही रहे थे कि इतने में भगवान रुद्र स्वयं उनके सामने प्रकट हो गए। और उन्होंने प्रचेताओं को भक्ति का उपदेश दिया। भगवान की आराधना किस प्रकार की जाये इसके लिये एक सुदीर्घ स्त्रोत भी बता दिया और ध्यान की विधि भी समझाई। देखो, उनका आपस में जो प्यार था उसी को देखकर भगवान उन पर बड़े प्रसन्न थे। उनका आपस में इतना प्यार था कि वे सब तपस्या करने के लिए भी एक साथ ही निकल पड़े थे। अब शंकर भगवान के उपदेशानुसार ये प्रचेतागण भक्ति में लग गए परन्तु प्राचीनबर्हि तो कर्मकाण्डी थे। नारदजी को उन पर दया आ गई। नारदजी अहैतुकी दया करने वाले हैं। बोले, यह कर्मकाण्डी है, कर्म, कर्म करता रहता है। यज्ञ कुण्ड से जो धुआँ निकलता है वह केवल इसकी आँखों में ही नहीं बुद्धि में भी भर गया है, जिससे इसकी बुद्धि भी धूमिल हो गई है। और अपने यज्ञों में यह कितने ही पशुओं की बलि चढ़ाता जा रहा है। महा भयंकर काम करता रहता है। इसके लड़के तो भक्त हो गए, परन्तु यह ज्यों-का-त्यों ऐसा ही रह जाएगा तो ठीक नहीं होगा। तो वे आ गए प्राचीनबर्हि के पास ‘नारायण-नारायण’ करते हुए। बोले - अरे राजन्, तुम्हें मालूम है कि दुःख की हानि कैसे होती है? क्या इससे तुम सुखी हो गए? देखो एकदम से कोई आ कर ऐसा प्रश्न पूछ बैठे, तो क्या उस आदमी का दिमाग चकरा नहीं जाएगा? यहाँ नारदजी आकर सीधे ऐसा ही प्रश्न करते हैं। राजा कहने लगा, ”नहीं भगवन् मुझे मालूम नहीं है। घर में रहते-रहते पुत्र-धन और कर्म में मैं ऐसा फँस गया कि मैंने कुछ सोचा ही नहीं। मुझे कुछ मालूम नहीं। अब आप दया करके मुझे बताइये।“ तब वे कहते हैं, ”तूने यज्ञ में जितने पशु मारे हैं, वे सब-के-सब आकाश में प्रतीक्षा कर रहे हैं।“ मांस आदि खाने वालों को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए। नारदजी ने प्राचीनबर्हि को उन सब पशुओं का दर्शन कराया और कहा कि देखो, वे सब हाथ में शस्त्र लेकर खड़े हैं। तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं। प्राचीनबर्हि बहुत भयभीत हो गया। घबराकर वह बोला, ”महाराज आप मुझे इनसे बचने का उपाय बताइये।“ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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