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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
12.परीक्षित के द्वारा कलि का निग्रह
राजा परीक्षित ने कहा- यह शूद्र तुम्हे पीड़ित कर रहा है अतः मैं इसे मार डालता हूँ। ऐसा कहकर वे राज वेश धारण किए हुऐ शूद्र को मारने के लिए बढ़े। अब वह तो कलि है, बड़ा चतुर है। उसी क्षण वह परीक्षित के चरणों में गिर पड़ा। और कहने लगा- महाराज, मैं आपकी शरण में आया हूँ। मैं दीन हूँ। मुझे मत मारिए। परीक्षित ने कहा- शरण में आने वाले को नहीं मारना- यह तो हमारा धर्म है, लेकिन तुम सब लोगो को अधर्म के मार्ग पर ले जाते हो, इसलिए मेरे राज्य में नहीं रह सकते, यहाँ से बाहर निकल जाओ। मैं तुमको सीमा के बाहर भेजता हूँ। कलि कहता है, ‘‘राजन आपने बड़ी विचित्र बात कही कि राज्य की सीमा के बाहर जाओ। आप समस्त पृथ्वी के चक्रवर्ती सम्राट हैं, मै जहाँ देखता हूँ वहाँ आप का ही राज्य दिखाई देता है। जहाँ देखता हूँ वहीं आप धनुषबाण धारण किये दीखते हैं। मैं कहाँ जाऊँ राज्य के बाहर जा नही सकता। मैं भी आपकी ही एक प्रजा हूँ, मुझे रहने के लिए कोई स्थान दीजिए।’’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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