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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
20.बकासुर का उद्धार
बछड़ों को चराने हेतु बलराम श्याम तथा ग्वालबाल वन-वन घूमा करते थे। एक दिन बछड़ों को जल पिला कर, वे स्वयं भी जल पी रहे थे तो उन्होंने देखा कि वहाँ एक बड़ा-सा बगुला बैठा हुआ है। यह बगुला बक है, बकी (पूतना) का भाई। उसका मुँह बड़ा विशाल है।
जैसे ही उसने भगवान श्रीकृष्ण को आते देखा, बोला इसने ही मेरी बहन को मारा था। बस, वह उन्हें निगल गया। सारे ग्वालबाल व्याकुल हो गये। अरे! श्रीकृष्ण कहाँ गये? इसने तो उनको निगल ही लिया। जब श्रीकृष्ण बगुले के भीतर गए तो वहाँ अग्नि उत्पन्न हो गई। घबराकर बगुले ने श्रीकृष्ण को उगल दिया। फिर वह चोंच से भगवान को घायल करने लगा। भगवान ने उसके दोनों चोंच पकड़कर उसे फाड़ डाला। ‘बकासुर’ का वध हो गया। बक तो आपको मालूम है न, बगुला भगत का अर्थ सब जानते ही हैं। एक पैर पर ऐसे खड़ा हो जाता है, जैसे ध्यानस्थ हो। परन्तु जैसे ही मछली देखी, झट से वह उसे पकड़ लेता है। यह बगुला बड़ा दम्भी होता है। देखो भगवान श्रीकृष्ण की लीलाएँ ऐसी है। ऊपर से लगता है, उन्होंने इसको मारा, उसको मारा। परन्तु इन सब पर यदि हम आध्यात्मिक दृष्टि से विचार करें, इन्हें अपने ही अन्तःकरण में देखते जाएँ, तो इनका अर्थ यानी जिनके ये प्रतीक हैं वे सब सामने आते जाएँगे। अविद्या, जड़ता, काम, दम्भ ये सब आते हैं और भगवान सबको खत्म करते जा रहे हैं। ये सब असुर बन कर गोकुल में आये, अब वृदावन में भी असुर रहे हैं, यहाँ भी भगवान स्वयं उनको नष्ट कर रहे हैं। इसलिए देखो, हृदय में भगवान का प्रवेश हो जाए तो कितनी अच्छी बात होगी। बस! फिर तो वे ही सारा काम करते जाते हैं। फि हमको कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ती। वे ही हमारे अन्तःकरण में उठने वाली आसुरी वृत्तियों को नष्ट करते रहते हैं। इस प्रकार बकासुर का वध हुआ। ये बच्चे सबको बताते रहते थे कि आज इन्होंने इसको मारा, फिर उसको मारा। सुन-सुनकर सब लोगों को बड़ा आश्चर्य होता था। फिर भी वे यही समझते थे कि इस बच्चों में भगवान की शक्ति है, इसलिए इससे ऐसे काम हो पा रहे हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 10.11.48
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