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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
8.कपिल भगवान से माता देवहूति का ज्ञानार्जन
सर्ग का वर्णन भागवत में अनेक बार आया है। इस वर्णन के द्वारा यहाँ भगवान का ही संकेत किया गया है। आगे देवहूति और कपिलदेव का संवाद आता है और यही तीसरे स्कन्ध की विशेषता है। अब सबसे पहले दूवहूति हाथ जोड़कर अपने पुत्र साक्षात भगवान कपिल से कहती हैं-
मैं इन झूठी इन्द्रियों को खुश करने में लगी रही। मैंने बड़ा धोखा खाया। लेकिन अब मुझे उनसे वैराग्य हो गया है। आज मुझे आपके आशीर्वाद के रूप में नयी दृष्टि प्राप्त हो गयी है। आप मेरे मोह को दूर कीजिए। मैं बहुत समय तक इस अज्ञान अंधकार में पड़ी रही। इस प्रकार यहाँ बहुत ही सुन्दर वर्णन किया गया है।
आज मैं आपकी शरण में आयी हूँ। अपने भृत्य के संसार रूपी पेड़ के लिए आप कुठार रूप, कुल्हाड़ी रूप हैं। इस संसार वृक्ष को आप काट डालेंगे। यह सुनकर भगवान तो बड़े ही प्रसन्न हुए। अपनी माता को ज्ञान देने के लिए तत्पर होकर वे कहते हैं, ‘‘तमको मै अध्यात्म योग का उपदेश करूँगा।’’ अब देखो, यह अध्यात्म योग क्या है? भगवान कहते हैं - हम सब जो बन्धन-बन्धन करते रहते हैं वह सब वास्तव में हमारे मन के कारण ही हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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