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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
5.परशुराम-अवतार
इसके बाद परशुराम अवतार की कथा आती है। परशुराम जी जमदग्नि ऋषि तथा रेणुका देवी के पुत्र थे। उनके और भी (वसुमन् आदि) कई लड़के थे। रेणुका देवी से एक दिन कोई अपराध हुआ। जमदग्नि ऋषि ने कहा- माँ को मार डालो, इसका सिर काट डालो। लड़के मारने को तैयार नहीं हुए। माँ को कैसे मारते? पिता को क्रोध आया। “मेरे आदेश को नहीं मानते? तुम भी मर जाओ।” इतने में उनका सबसे छोटा लड़का परशुराम हाथ में फरसा लेकर आया। पिता ने कहा- माँ को मारो। उसने इधर-उधर देखा भी नहीं। पिता जी ने कहा है तो बस! बात खत्म हो गई। फरसा उठाया और माता को तथा भाइयों को मार डाला। वह इसलिए कि वे जमदग्नि ऋषि का प्रभाव जानते थे। परन्तु ऐसी बात सुनकर हम सब को बड़ा आश्चर्य होता है। लोग आँखें फाड़-फाड़ कर देखने लगते हैं। ध्यान में रखना- यह भगवान का अवतार है- परशुराम-अवतार। परशुराम-अवतार रामावतार के पूर्व का अवतार है। यहाँ वर्णन का क्रम दूसरी तरह से चल रहा है। जमदग्नि ऋषि परशुराम के ऊपर प्रसन्न हुए और बोले, “बेटा मैं तुझ पर बहुत प्रसन्न हूँ। तुझे जो माँगना हो माँग ले।” परशुराम जी ने कहा, “मेरी माँ को और भाइयों को जीवित कर दीजिए और वह भी इस प्रकार कि जैसे वे सो कर जगे हों। उन्हें यह स्मरण न रहे कि मैंने उनको मारा था, नहीं तो वे फिर कभी हृदय से मुझसे प्यार नहीं कर पायेंगे।” जमदग्नि ऋषि कहते हैं- तथास्तु! फलस्वरूप, जमदग्नि ऋषि भी प्रसन्न हुए, रेणुकादेवी भी प्रसन्न हुई। उस समय सहस्रार्जुन कार्तवीर्य नाम का एक क्षत्रिय राजा था। उसको बहुत मद चढ़ गया था। एक दिन वह जमदग्नि ऋषि के आश्रम में आया। ऋषि के पास एक कामधेनु थी, जिसके कारण उस राजा का तथा उसकी सेना का बड़ा भव्य स्वागत किया गया। यह देख कर राजा सहस्रार्जुन कहता है कि यह गाय तो मेरी होनी चाहिए। वह जबरदस्ती उसे ले गया। जब परशुराम को यह मालूम पड़ा तो उन्होंने एक फरसे से सहस्रार्जुन को मार डाला और वापस आकर पिताजी से कहा कि मैंने उसे मार डाला। जमदग्नि ऋषि कहते हैं- तुमको उसे मारना नहीं चाहिए था, वह तो प्रजा का पालन करने वाला राजा था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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