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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
49.श्रीकृष्ण-बलराम का गुरुकुल में जाना
अब वसुदवे जी को लगा कि मेरे ये दो बालक हैं, अभी तक मैंने इनका कोई संस्कार भी नहीं कराया है। ऐसा सोचकर तब उन्होंने गर्गाचार्य से उनका यज्ञोपवीत संस्कार कराया। फिर विद्याध्ययन के लिए उन्हें गुरुकुल में सान्दीपनि मुनि के पास भेजा। जिनका निःश्वास ही चारों वेद हैं, उन भगवान को वेदाध्ययन के लिए भेजा। लेकिन देखो, भगवान परम्परा का पालन करते हैं और गुरुकुल में जाते हैं। वे कहाँ गये? सान्दीपनि साधनालय, सान्दीपनि ऋषि का आश्रम - जो उज्जैन में था, भगवान वहाँ गए। गुरु के घर में रहकर उनकी सेवा करते हुए, भगवान ज्ञान प्राप्त करते हैं। गुरु के घर में रहकर उनकी सेवा करते हुए, भगवान ज्ञान प्राप्त करते हैं। गुरु उन पर प्रसन्न होते हैं। तब भगवान कहते हैं, “मैं आपके लिए क्या गुरुदक्षिणा लाऊँ? मुझे बताइये।” गुरुजी ने अपनी पत्नी से सलाह करके कहा कि प्रभास क्षेत्र के समुद्र में डूबकर हमारा बेटा मर गया। आप उसको वापस लेकर आइये। भगवान बलराम जी के साथ खोज करते हुए जाते हैं। यमराज- काल के पास जाकर उस मृत पुत्र को ले आते हैं, और दक्षिणा में गुरु को सौंप देते हैं। गुरुपत्नी प्रसन्न हो जाती हैं और इनको आशीर्वाद प्राप्त हो जाता है। गुरुकुल से भगवान जब मथुरा लौट आये तो सब लोग उनसे मिलकर, उन्हें देखकर परमानन्द में डूब गए। वहाँ भी समय अपनी गति से बीतता जा रहा था। तब गोकुल की याद करके भगवान को लगा कि वहाँ गोकुल में सारी गोपियाँ उनके विरह में व्याकुल हो रही हैं। भगवान को स्मरण हो आया कि मैंने उनसे कहा था कि मैं लौटकर आऊँगा, लेकिन यहाँ राज-काज में मैं ऐसा फँस गया हूँ कि यहाँ से निकलना मुश्किल हो रहा है। भगवान ने सोचा उद्धव मुझसे कोई कम तो हैं नहीं, क्यों न मैं उसी को वहाँ भेज दूँ? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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