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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
6.वराह भगवान के साथ हिरण्याक्ष का युद्ध
सुनकर उसे थोड़ा क्रोध तो आया ही, तथापि उसनें कहा - वे कौन हैं? आप कौन से परमात्मा की बात करते हैं? तब तक नारदजी भी वहाँ आ पहुँचे। वे तैयार रहते हैं। कहने लगे- मैं बताता हूँ वे कौन से परमात्मा हैं। वे तो सुअर बनकर आये हैं और तुम्हारी पृथ्वी को उठाकर ले जा रहे हैं। नारदजी की बात सुनकर उसे बड़ा गुस्सा आया। कहाँ हैं? उसने देखा भगवान पृथ्वी को अपने मुँह पर उठाकर ले जा रहे हैं। वह पीछे से चिल्लाता हुआ आता है, ‘‘डरपोक, कायर, रुक जा। भागता कहाँ हैं? मेरे साथ लड़ाई कर।’’ लेकिन भगवान उसकी बात सुनते नहीं। क्योंकि बुद्धिमान लोगों का स्वभाव होता है कि पहले वे अपना काम पूरा करते हैं। दूसरे लोग जो बेकार ही बीज में कछ-कुछ कहते-करते रहते हैं, उनकी ओर वे ध्यान नहीं देते। पहले अपना काम करते हैं। यहाँ वह भगवान को डरपोक कहता है, शठ कहता है, दुष्ट कहता है। भगवान सब गालियाँ सहन करते हैं। पृथ्वी को समुद्र के ऊपर रखकर उसे अपनी शक्ति देते हैं, जिससे वह अपने को धारण कर सके और फिर, पीछे मुड़कर हिरण्याक्ष से कहते हैं, ‘‘अब आओ! तुम्हारे जैसे के लिए ही मैं यहाँ आया हूँ उसका बड़ा सुन्दर वर्णन है। सारे देवता आकाश में एकत्रित हो जाते हैं। उनको ऐसा दृश्य देखने में बहुत आनन्द आता है। जहाँ-कहीं ऐसा लड़ाई चल रही हो, वे सब आकाश में एकत्रित होकर देखते रहते हैं कि आगे क्या होता है? अब वराह भगवान और हिरण्याक्ष भिड़ने लगे। दोनों एक दूसरे पर प्रहार करने लगे। भगवान गदा लेकर उसको मारने जाते हैं, लेकिन भगवान की गदा को भी वह उड़ा देता है जब भगवान के हाथ से गदा गिर जाती है। जब सब-के-सब देवता हाहाकार करने लग जाते हैं कि भगवान के हाथ से गदा चली गयी, अब क्या होगा? देखो, तब हिरण्याक्ष के पास आघात करने का अवसर था लेकिन वह कहता है, ‘‘उठा लो अपना शस्त्र। मैं निःशस्त्र के ऊपर आघात नहीं करता ।’’ भगवान उसकी तारीफ करते हैं कि तू बड़ा धर्म युद्ध जानने वाला है। भगवान ने संकल्प किया तो सुदर्शन चक्र आ गया। अब सुदर्शन चक्र से उसकी गदा कट जाती है। वह त्रिशूल फेंकता है त्रिशूल गिर जाता है। वह सोचता है, अब सब कुछ खत्म होता जा रहा है। राक्षस है, अपनी माया फैलाने लगता है, लेकिन भगवान के सुदर्शन चक्र से उसकी सारी माया कट जाती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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