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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
10.पंचम प्रश्न - नारायण का स्वरूप
माया तरण का उपाय सुनकर, अब राजा निमि को प्रश्न पूछने का एक और अच्छा निमित्त मिल गया। वे कहते हैं, “आपने कहा कि जो ‘नारायण परायण’ हो जाता है वह माया को सरलता से तर जाता है। कृपा करके अब मुझे आप यह बताइए कि ‘नारायण’ का स्वरूप क्या है? उनका स्वभाव कैसा होता है।” देखो, कैसे सुन्दर प्रश्न हैं। प्रश्नों का कैसा क्रम चल पड़ा है। पहला प्रश्न था कि जिससे परम श्रेय की प्राप्ति होती है वह भागवत धर्म क्या है? दूसरा था भगवद्भक्त कौन है? उसके लक्षण क्या हैं? फिर तीसरा था कि भगवद्भक्ति में जो बाधक बनती है वह माया क्या है? उस माया को पार करने का उपाय क्या है, कहाँ से प्रारम्भ करें? तब यह बताया गया कि जो नारायण परायण हो जाता है वह माया को पार कर जाता है। ऐसा कहने पर, स्वाभाविक प्रश्न यह उठा कि जिन नारायण के परायण हो जाना है उनका स्वरूप क्या है? कोई कहता है वे क्षीरसागर में रहते हैं तो कोई कहता है वे वैकुण्ठ लोक में रहते हैं। कोई कहता है गोलोक में रहते हैं तो कोई कहता है साकेत लोक में रहते हैं। कोई कहता है वे शंख-चक्र-गदा-पद्मधारी चतुर्भुज हैं तो कोई कहता है वे द्विभुज हैं। वास्तव में वे कैसे हैं? उनका क्या स्वरूप है? देखो, प्रभु को चतुर्भुज, द्विभुज मानने वालों में भी बहुत झगड़ा होता रहता है। झगड़े में वे एक दूसरे की भुजा काट डालते हैं। भगवान सब देखते रहते हैं कि ये कैसे लोग हैं! यह कोई विनोद की बात नहीं है। भगवान का तिलक किस प्रकार का होना चाहिए इस बात को लेकर लोग कोर्ट में केस करते हैं। अंग्रेजों के समय में भी किया था। अंग्रेज न्यायधीश उसका क्या निर्णय सुनाते? बोले, चार दिन आड़ा और चार दिन सीधा लगाते रहो। नहीं तो मन्दिर को ही बन्द कर डालो। वे और क्या कहते? देखो, ऐसे मूढ़ लोग भी होते हैं। इसीलिए कहा गया है कि मूढ़ भक्त या मूढ़ मित्र के स्थान पर एक बुद्धिमान् शत्रु का होना ज्यादा अच्छा है। ये मूढ़ भक्त बहुत कष्ट देते रहते हैं, बहुत उपद्रव मचाते रहते हैं। अतः यहाँ प्रश्न यह है कि उन नारायण का स्वरूप क्या है? वे दूध के सागर में रहते हैं कि शहद के सागर में? कहाँ रहते हैं? श्रीमद्भागवत में यह ‘नारायण’ शब्द बार-बार आता रहता हैं। इसलिए जरा अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि नारायण का स्वरूप क्या है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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