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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
73.नारद जी का भगवान की गृहस्थी देखना
इसके बाद एक सुन्दर प्रसंग का वर्णन आता है। एक दिन देवर्षि नारद जी के मन में विचार आया है कि मैं कितने ही गृहस्थों को देखता रहता हूँ, एक पति और एक पत्नी में ही कितना कलह, कितना झगड़ा होता रहता है, अशान्ति रहती है। एक पत्नी को ही खुश रखना कठिन हो जाता है, तो फिर ये श्रीकृष्ण सोलह हजार एक सौ आठ पत्नियों के साथ कैसे रहते होंगे? इस कुतूहल से भर कर उन्होंने सोचा जरा चलकर देख आऊँ कि द्वारका में श्रीकृष्ण की इतनी बड़ी गृहस्थी कैसे चल रही है। नारायण, नारायण करते हुए वे वहाँ पहुँच ही गए। नारदजी पहले रुक्मिणी जी के महल में गए। भगवान वहाँ उनका स्वागत करते हुए कहते हैं, “आइये! हमारा बड़ा भाग्य है जो आप हमारे घर पर पधारे हैं।” फिर भगवान उनको बैठाते हैं और उनके चरण धोते हैं, और उनकी पूजा करते हैं। फिर कहते है, “आदेश करें कि हम आपकी क्या सेवा करें।” जब वे दूसरे महल में जाते हैं तो भगवान कहते हैं, “अरे! नारद जी आप कब आये? आइये।” वहाँ भी भगवान उठकर उनका स्वागत करते हैं और पूजा सत्कार करते हैं। भगवान के अन्तःपुर में, एक-एक करके नारद जी सभी महलों में गए। वहाँ उन्होंने देखा कि जितने महल हैं, जितनी रानियाँ हैं उतने भगवान हैं। हर महल में उन्होंने भगवान को अलग-अलग रूप में देखा। कहीं उन्होंने भगवान को स्नान करते हुए पाया, तो कहीं सन्ध्या वन्दन करते हुए। कहीं पूजा करते हुए तो कहीं बलिवैश्वदेव आदि यज्ञ करते हुये। कहीं पर जलपान (नाश्ता) करते हुये देखा तो कहीं अपनी पत्नी के साथ बात करते हुए। कहीं भगवान अपनी सुधर्मा नामक सभा में जाने के लिए तैयार खड़े थे। कहीं पर ऐसा दिखायी दिया कि भगवान के पास कई लोग आये हुए हैं, भगवान उनके साथ वार्तालाप कर रहे हैं। इस प्रकार वे एक-एक महल में जाते हैं। जिस महल में जाते हैं। उसी में श्रीकृष्ण को देखते। सब देख-देखकर नारद जी चकरा गये कि यह सब क्या है? इतने महल, इतनी पत्नियाँ और इतने श्रीकृष्ण? वे समझ गये। कहने लगे, “नमस्ते अस्तु भगवन-भगवन! आपको नमस्कार! आपकी माया को नमस्कार!” एक साथ इतनी सारी पत्नियों को कैसे खुश रख रहे होंगे? आपके प्रति ऐसी शंका करना व्यर्थ है, मूर्खता है। यहाँ वर्णन आता है कि भगवान बड़े नियम निष्ठ थे। वे प्रातः जल्दी उठते थे और उठते ही आत्म ज्योति का ध्यान करते थे। उसके बाद ही अन्य सभी कामों को एक के बाद एक क्रमबद्ध रीति से अनुशासन पूर्वक करते थे। ऐसे भगवान की गृहचर्या थी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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