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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
11.भागवत पुराण के दस विषय
अब शुकदेवजी कहते हैं कि इस भागवत पुराण में दस विषय बताए गए हैं।
यहाँ अगले अध्याय के पहले ही श्लोक में दस विषयों को गिनाया गया है। सबसे पहले है सर्ग-सृष्टि। फिर आता है विसर्ग - विशेष सर्ग। अब सर्ग में और विसर्ग में क्या अन्तर है? यद्यपि यहाँ पर सब की परिभाषा दी गई है, तथापि हम उसे सरल भाषा में देखेंगे। पंचमहाभूत जो आपको दिखाई देते हैं, वह सर्ग हैं। अपने में भी जो पंचमहाभूत, मन, बुद्धि है ये सब सर्ग हैं। लेकिन इन पंचमहाभूतों के द्वारा हम सब जो रचना करते हैं उसे विसर्ग कहते हैं उदाहरण के लिए, कुम्हार मिट्टी से घड़ा बनाता है। मिट्टी से कुम्हार घड़ा तो बनाता है लेकिन मिट्टी बनाता है क्या? कोई कुम्हार या वैज्ञानिक मिट्टी, फूल आदि नहीं बना सकता। प्लास्टिक के फूल की बात नहीं हो रही है। वायुमण्डल, आकाश, पृथ्वी- इनकी उत्पत्ति को सर्ग कहते हैं। उसमें मनुष्य जो सृष्टि रचता है, हर एक जीव अपनी वासना के अनुसार जो सृष्टि रचता है, उसको विसर्ग - विशेष सर्ग - पौरुष सर्ग कहते हैं। तीसरा विषय है स्थानं। सृष्टि बनने के बाद वह कहाँ पर रहती है? तो वह जहाँ रहती है वह ‘स्थान’ है। चौथा विषय है पोषणं। बच्चे को जन्म दिया हो तो उसका पोषण भी करना पड़ता है। अन्यथा उसका नाश होने लगेगा, अधःपात होने लग जाएगा। सारे जीवों का पोषण कौन करता है? तो कहते हैं पोषणं यानी भगवान का जो अनुग्रह है, कृपा है, वही सबको बनाए रखती है। अगर भगवान इतने दयालु है, तो सृष्टि में इतना भेद क्यों दिखाई देता है? बोले, कर्मवासना के कारण। पाँचवाँ है ऊतयः- ऊती- अर्थात् कर्मवासना। इसके पश्चात छठा है मन्वन्तर। एक मनु के शासनकाल को मन्वन्तर कहते हैं। जैसे अपनी सरकार का शासनकाल पाँच वर्ष का होता है, एक मनु का शासनकाल इकहत्तर से कुछ[2] अधिक महायुगों का होता है। इसे हम आगे विस्तार से देखेंगे। फिर सातवाँ ईशानुकथा- भगवान के भिन्न-भिन्न अवतारों की कथा। आठवाँ है निरोधः निरोध का अर्थ है प्रलय। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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