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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
3.देवताओं द्वारा समुद्र-मन्थन का प्रस्ताव
भगवान के आदेश मानकर देवता लोग राजा बलि के पास गये। दोनों का मिलना बड़ा विचित्र था। यह राजनीतिज्ञों का जो मिलना होता है कि हम साथ-साथ मिलकर कुछ करेंगे, वह सच में गड़बड़ ही होता है। यहाँ दोनों ही सोचते हैं कि अमृत निकलेगा तो हम ले लेंगे। प्रयत्न साथ-साथ करेंगे, पर अमृत निकलेगा तो उसे हम ले लेंगे। Partnership वाले Business कैसे होते हैं, व्यावसायिक साझेदारी कैसी होती है यह तो सब जानते ही हैं। मैंने एक कथा सुनी थी कि दो सेठ थे, उन्होंने साथ-साथ कोई व्यवसाय प्रारंभ किया। कई सालों तक तो सब बहुत अच्छी तरह से चलता रहा। फिर एक दिन पता नहीं कैसे, एक के खाने में जहर आ गया, उसे Food poisoning हो गया और उसकी स्थिति ऐसी हो गयी कि अन्ततः वह मर गया। मरते समय उसको लगा कि अब तो मैं मरणासन्न हूँ। क्यों न सच को स्वीकार कर लूँ। उसने अपने दूसरे साझेदार को बुलाया। वह घबराकर दौड़ता हुआ आया। पहला कहता है- देख, अब मैं मर रहा हूँ। मेरे घर का ध्यान रखना जरा अच्छी तरह से। और मरने से पूर्व मैं अपना अपराध तुमको बता देता हूँ। Business (व्यवसाय) में गड़बड़ी करके मैं दस लाख रुपये खा गया और तुम्हें अब तक नहीं बताया। लेकिन अब मुझे लग रहा है कि मरने से पहले तुम्हें यह बात बता ही दूँ। तब उसका दूसरा साथी भी आँखों से आँसू बहाते हुये कहता है- तुमने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है, तो मैं भी स्वीकार कर लेता हूँ कि तुम्हारे भोजन में यह जहर मैंने ही मिलाया है। इसी प्रकार, अब देखो समुद्र मन्थन से अमृत जब निकलेगा तो क्या देवता लोग यह चाहेंगे कि असुर अमृत ले जायें? ये तो आपस में बराबर विभाग भी नहीं करेंगे, क्योंकि असुर पहले ही शक्तिशाली बने हुए हैं। वे लोग अमृत ले लेंगे तो और भी शक्तिशाली बन जायेंगे। ये देवतागण ऐसा थोड़े ही चाहेंगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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