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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
45.धनुष-भंग
मथुरा नगरी का दर्शन करते हुए आगे बढ़ते-बढ़ते वे यज्ञमण्डप पर पहुँच जाते हैं। वहाँ यज्ञमण्डप के बीचों-बीच वह धनुष रखा गया था। रक्षकों के रोकने पर भी ये रुके नहीं। भगवान ने उसे उठाकर डोरी चढ़ाते हुए तोड़ ही दिया। फिर उसी के टुकड़ों से बलराम जी तथा श्रीकृष्ण ने उस दुष्ट रक्षकों को ही नहीं, वरन् उनकी सहायता के लिए भेजे गए कंस के अन्य सैनिकों को भी मार डाला। शीघ्र ही नगर के सभी लोगों में यह खबर फैल गई। कंस की और भी जितनी चीजें वहाँ पर थीं, भगवान श्रीकृष्ण ने एक-एक करके उन सबको नष्ट कर दिया। यह सब देखकर कंस के पक्ष वालों के मन में तो डर बैठ गया परन्तु अन्य जो भगवान के भक्त थे वे सब बड़े प्रसन्न हो गए। वे कहने लगे-बहुत अच्छा, अब इस कंस को अपने किये का फल मिलने वाला है। इस प्रकार मथुरा में विचरण करके सूर्यास्त के समय श्रीकृष्ण बलराम तथा उनके साथी ग्वालबाल अपने डेरे पर पहुँचे। भोजनादि के बाद उस रात उन सब ने वहीं विश्राम किया। कंस की चाल जानते हुए भी निश्चित हो कर वे सो गए। कंस को सारी बातों का पता लगा तो वह बहुत डर गया, उसे नींद भी नहीं आ रही थी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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