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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
10.राजा बलि की अमरावती पर विजय
अब अगले मन्वन्तर की कथा आती है। जैसा कि हम पहले देख चुके हैं, राजा बलि बड़े समर्थ थे और गुरु भक्त भी थे। इसलिए वे बड़े शक्तिशाली हो गए थे। बड़ी भारी तैयारी करके उन्होंने अपनी सेना के साथ जब अमरावती को घेर लिया, तब देव गुरु बृहस्पति के आदेशानुसार, स्वेच्छानुसारी रूप धारण कर देवताओं को स्वर्ग छोड़कर कहीं छिप जाना पड़ा। तब बलि ने स्वर्ग सहित पूरे विश्व पर विजय प्राप्त कर ली। अब देवता गण बड़े दुःखी हो गए कि हमारे पास कुछ नहीं रहा। देवताओं की माता है अदिति। कश्यप ऋषि की दो पत्नियाँ थीं। दिति और अदिति। दिति के पुत्र दैत्य और अदिति के आदित्य। अब अदिति को बहुत दुःख होने लगा कि मेरे पुत्रों में कोई सामर्थ्य नहीं रही। उनका कोई वैभव भी नहीं रहा। अदिति को अत्यधिक उदास देखकर कश्यप ऋषि ने उसका कारण पूछा तो अदिति ने उन्हें अपनी व्यथा कह सुनाई। और उनसे प्रार्थना की कि हमारे पुत्रों के लिए आप कुछ कीजिए। तब कश्यप ऋषि ने अदिति से कहा ठीक है, मैं तुम्हें व्रत बताता हूँ। उस व्रत के द्वारा तुम भगवान को प्रसन्न करो। और जब भगवान प्रसन्न हो जाएँ, तो तुम जो चाहती हो वह उनसे माँग लेना। ऐसा कह कर उन्होंने उसे ‘पयोव्रत’ बताया। उस व्रत के आचरण द्वारा अदिति ने भगवान को प्रसन्न कर लिया। तब भगवान अदिति से कहते हैं- मैं तुम्हारी इच्छा जानता हूँ। लेकिन इस समय देवता लोग दुर्बल हो गए हैं। असुर लोग शक्तिशाली भी हैं और वे गुरु भक्त भी हैं। इसलिए हम उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते। देखो, भगवान सम दृष्टि वाले हैं या नहीं? बोले-इस समय मैं बिना कारण देवताओं का पक्ष लेकर उनको हटा नहीं सकता क्योंकि वे धर्मपूर्वक रह रहे हैं। अपने इस ईश्वर रूप में रहकर मैं पक्षपात नहीं कर सकता। लेकिन तुम्हारा काम भी तो करना है। इसलिए मैं तुम्हारा पुत्र बन कर आऊँगा, इन्द्र का छोटा भाई बनकर आऊँगा। एक भाई अपने भाई का पक्ष ले सकता है, वह पक्षपात नहीं कहलाता। भगवान ने ऐसी युक्तिपूर्ण बात बताई। और कहा तब मैं उसके साथ, उसके पक्ष में रहकर कार्य करूँगा, तुम्हारी इच्छा को पूर्ण करूँगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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