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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
9.योगमाया की भविष्यवाणी
कंस को वैसे भी ठीक तरह से नींद नहीं आती थी। जैसे ही उसने सुना कि बच्चे का जन्म हुआ है, तो उठकर सीधे दौड़ पड़ा और सूतिकागृह में पहुँच गया। देवकी कहती हैं कि यह लड़का नहीं लड़की है, तुम्हें लड़की की हत्या नहीं करनी चाहिए। बोले कुछ नहीं लड़का हो या लड़की, तुम्हारी माया मेरी समझ में नहीं आती है। लड़की कब लड़का बन जायेगी इसका कोई भरोसा नहीं है। वह इतना घबराया आ था कि बच्ची को पैरों से पकड़ कर गोल-गोल घुमाते हुए उसे एक पत्थर पर पटक दिया। लेकिन माया कहीं राक्षस के हाथ में आने वाली है? वह उसके हाथ से फिसल कर निकली और अष्टभुजा देवी के रूप में प्रकट होकर बोली- अरे मूर्ख! तू मुझे क्या मारता है? तेरा काल तो पहले ही जन्म ले चुका है, अब व्यर्थ ही निर्दोष बालकों की हत्या करना छोड़ दे।
इतना कहकर देवी अन्तर्धान हो गई। अब देखो, यहाँ भी देवी को बोलने की क्या जरूरत थी? वे चुप रह सकती थीं, लेकिन कंस के मन में और ज्यादा भय उत्पन्न करना था, इसलिए बता दिया उसे। वह कहाँ है यह नहीं बताया। इससे कंस की चिन्ता और भी बढ़ गई। देवी की बात सुनकर न जाने कंस को क्या हुआ कि वसुदेव और देवकी के पास जाकर कहता है- मुझे क्षमा कर दो मेरी बहन, मैंने तुम्हारे ऊपर बड़ा अत्याचार किया। उसको न जाने कैसा डर लगा कि वह देवकी को समझाता है कि पूरी दुनियाँ काल के वश में है। जिसका जन्म होता है उसका मरण भी होता है, कौन किसको मारता है? तुम दुःखी नहीं होना। देखो, यह राक्षस की वृत्ति होती है, अपना दुःख सत्य है और दूसरे का दुःख मिथ्या। हिरण्यकशिपु का उपदेश हम देख चुके हैं, यहाँ कंस भी उपदेश देता है। यह भी वेदान्त पढ़ता था, लेकिन वेदान्त पढ़ने के बाद भी ऐसी बात बोलता है। यह कंस है और वह हिरण्यकशिपु था। यह ध्यान में रखना। फिर कहता है कि यह सब अज्ञान से उत्पन्न बुद्धि है कि यह मेरा, यह पराया। तुम लोग मुझे क्षमा कर दो। ऐसा कह कर कंस ने उसके चरण पकड़ लिए और उन्हें कारागार से मुक्त कर दिया। वसुदेवजी ने कहा कि तुम जो कह रहे हो वह तो ठीक ही है, सब अविद्या का ही खेल है। कंस ने देखा कि वसुदेव-देवकी ज्यादा नाराज नहीं है, तो उनसे अनुमति लेकर वह अपने महल में चला गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 10.4.12
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